Monday, March 29, 2010

लोहिया, एक बहु आयामी व्यक्तित्व

कुर्बान अली


भारत में समाजवादी आंदोलन के संस्थापकों में से एक और राष्ट्रीय आंदोलन के एक प्रमुख हीरो डा. राम मनोहर लोहिया का यह जन्मशताब्दी वर्ष है। डा. लोहिया ने इस देश को आजाद कराने के अलावा स्वतंत्रता के बाद हुई राजनीति में एक अहम रोल अदा किया और देश की राजनीति को कुछ नए मंत्र दिए। डा. लोहिया ने एक बार कहा था कि इस देश के आम आदमी को देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है, सिवाय इसके कि वो यह समझता है कि मैं उसकी बात कहता हूं।
डा. लोहिया का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह गांधीवादी समाजवादी, जन्म से विद्रोही और राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ लेखक, पत्रकार, सांसद, कानून विद् और भारतीय संस्कृति के बड़े जानकार थे। वह 57 वर्ष की कम उम्र में इतना सब कुछ कर गए जो आम हालात में संभव नहीं होता है। डा. लोहिया के जीवन काल को दो भागों में देखा जाना चाहिए। वह 23 मार्च 1910 को पैदा हुए थे और 1932 तक उन्होने अपनी शिक्षा पूरी की। इस दौरान भी वह कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे। 1933 में जर्मनी से वापस आकर वह पूरी तरह राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े और कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य बने। 1934 में जब कांग्रेस पार्टी के अंदर ही कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया गया तो वह उसके संस्थापक सदस्य थे। 1936 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं जवाहर लाल नेहरू ने उन्हे कांग्रेस के विदेश विभाग का सचिव बनाया और डा. लोहिया ने पहली बार कांग्रेस की विदेश नीति का दस्तावेज तैयार किया। 1939 में डा. लोहिया पहली बार कलकत्ता में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किए गए और फिर 1946 तक तो यह सिलसिला अनवरत चलता रहा। 1942 के अगस्त क्रांति आंदोलन में उन्होने भूमिगत रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन 1944 में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हे लाहौर के किले में भीषण यातनाएं दी गई। उसी समय महात्मा गांधी ने अपनी पत्रिका हरिजन में एक लेख लिखा ‘ जब तक राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश जेल में बंद हैं वह खामोश नहीं बैठ सकते। क्योंकि इनसे बहादुर व्यक्ति को वह नहीं जानते।

देश आजाद हो जाने के बाद डा. लोहिया इस राय के थे कि कांग्रेस पार्टी में रहकर देश के नवनिर्माण का काम किया जाए लेकिन जब कांग्रेस पार्टी ने अपने विधान में यह संशोधन कर दिया कि अलग सदस्यता वाला संगठन पार्टी के अंदर नहीं रह सकता तो फिर वह आचार्य नरेन्द्र देव और जय प्रकाश नारायण के साथ कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए और सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। पहले आम चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी को अपेक्षित सफलता नहंीं मिल पाई। इसलिए समाजवादियों ने 1954 में जेबी कृपलानी की कृषक मजदूर प्रजा पार्टी के साथ विलय कर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। डा. लोहिया इस नई बनी पार्टी के महासचिव चुने गए और उन्होने ही पार्टी का नीति वक्तव्य तैयार किया और संघर्ष का एक जोरदार कार्यक्रम शुरू किया। उत्तर प्रदेश में सिंचाई की दरों में बढोतरी के खिलाफ (जिसे नहर रेट आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है।) डा. लोहिया ने गिरफ्तारी दी और कई माह तक जेल में बंद रहे। इसी दौरान केरल की प्रजा समाजवादी सरकार ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलवा दी जिसमें कई प्रदर्शनकारी मारे गए। डा. लोहिया ने इस अनैतिक काम के लिए अपनी सरकार को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया और जब मुख्यमंत्री पट्टम थानू पिल्लई ने ऐसा करने से इंकार किया तो उन्होने खुद पार्टी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया। यही घटना एक वर्ष बाद पार्टी में विभाजन का कारण बनी और डा. लोहिया प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से निष्कासित कर दिए गए। इस निष्कासन के बाद उन्होने 1 जनवरी 1956 को अपनी सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया और देश में एक धारदार विपक्षी पार्टी का रोल निभाते हुए एक साथ कई आंदोलन शुरु किए।
डा. लोहिया ने समता मूलक समाज बनाने के अलावा जाति तोड़ो, हिमालय बचाओ, दाम बांधो, भारत पाक महासंघ बनाओ, पिछड़ों को विशेष अवसर दो और नर-नारी समानता के लिए कई ऐतिहासिक आंदोलन चलाए। अपने कार्यकर्ताओं से उनका कहना था कि वोट, जेल और फावड़ा इसके साथ समाज बदलने के लिए उन्हे तैयार रहना चाहिए। देश में रचनात्मक कार्यो के लिए उनका मंत्र था ‘एक घंटा देश को। वह चौखम्भा राज और विकेन्द्रीय करण के बड़े हिमायती थे। और चाहते थे कि गांव, जिला, राज्य और केन्द्र के बीच एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसका सबसे ज्यादा लाभ गांवों को पहुंचे।

डा. लोहिया ने स्वतंत्र भारत की राजनीति में कई प्रयोग किए। 1952,57 और 1962 के तीन आम चुनाव लगातार जीतने के बाद जब देश में यह धारणा बनी कि कांग्रेस पार्टी को सत्ता से नहीं हटाया जा सकता तो 1963 में उन्होने गैर कांग्रेस वाद की राजनीति की शुरूवात की और सभी प्रमुख विपक्षी दलों के बीच वोटों के विभाजन को रोक कर 1967 में गैर कांग्रेस वाद का एक सफल प्रयोग किया। उनकी इसी रणनीति के तहत 9 राज्यों में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी.


लेखक- बीबीसी के पूर्व संवाददाता और वर्तमान में इंडिया न्यूज में कार्यरत हैं.

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