Wednesday, April 21, 2010

कभी ये तैराकों कि बावली थी .....



नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली के लोग जहां कभी तैराकी सीखने के लिए आते थे। और जो कभी तपती गर्मी से झुलस रहे राहगीरों के लिए कुछ पल आराम का स्थल हुआ करती थी वह अग्रसेन की बावली आज उपेक्षा का दंश ङोल रही है। 14 वीं शताब्दी में बनी यह बावली अब सूख चुकी है। दिलचस्प यह है कि दिल्ली के हृदय कनॉट प्लेस के समीप हेली रोड के हेली लेन स्थित यह बावली चारो तरफ से मकानों से घिरी है जिससे किसी बाहरी व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि यहां कोई बावली है। बावली की दीवारों से सटे मकान उस कानून की धज्जियां उड़ाते हैं जिसमें यह कहा गया है कि किसी ऐतिहासिक इमारत के दो सौ मीटर के दायरे में निर्माण कराना कानूनी अपराध है।
60 मीटर लम्बी, 15 मीटर चौड़ी और 103 सीढ़ियों वाली यह बावली तैराकी के लिए विशेष
के लिए विशेष रूप से जानी जाती थी। यहां पर विशेष रूप से उस्ताद होते थे जो लोगों को तैरना सिखाते थे। कभी यह गद्दी फैज खानदान के पास हुआ करती थी। जिसने कई तैराकी के कई शागिर्द तैयार किए। इस खानदान के अखलाक अहमद फै ज का कहना है कि इस बावली की आखिरी गद्दी उन्ही के पास थी। यह गद्दी कई पीढ़ियों से उनके खानदान के पास थी लेकिन अब जब बावली सूखी है तो वहां कोई नहीं आता।
बावली की हालत भी बदहाल है। वहां इसके संरक्षण में रखे गए युवक ने बताया कि इसके ऊपर बने मस्जिद का एक सिरा सन 78 मे बिजली गिरने से टूट गया था। इसके कुछ छज्जे भी गिर चुके हैं। यह बावली स्थानीय लोगों की घोर उपेक्षा की शिकार है। यहां पर फेंके गए कूड़े प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं। बावली के पीछे का लगभग 57 मीटर बड़ा कू आं भी सूख चुका है। लाल बलुए पत्थर से बनी बावली की वास्तु संबंधी विशेषताएं तुगलक और लोदी काल की तरफ संकेत कर रहे हैं लेकिन परंपरा के अनुसार इसे अग्रवाल समाज के पूर्वज अग्रसेन ने बनवाया था। इसलिए इसे अग्रसेन की बावली कहते हैं।
इसक संरक्षण के संबंध में भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) के वरिष्ठ पुरातत्वविद ने बताया कि इसकी स्थिति पहले और भी खराब थी लेकिन एएसआई इसके संरक्षण का कार्य कर रहा है। जल्द ही इसके संरक्षण का कार्य पूरा कर लिया लाएगा।

5 comments:

shweta yadav said...

achi post hai. lagta hai bahut bhagdaud ki hai aapne is bawli ko talashne me. logo ko pani ki ahmiyat ka pata chalega aapki is post se.

अभिनव उपाध्याय said...

aap sahi kah rahi hain. shukriya shweta ji

Shekhar Kumawat said...

aaj viran padi he

pani nahi he is liye


बहुत सुंदर


bahut khub


shekhar kumawat


http://kavyawani.blogspot.com/

Smart Indian said...

बहुत बढ़िया आलेख, धन्यवाद!

javed shah khajrana said...

hajaaro saal nargis apni be-noori pe roti hai....badi muddat se hota hai chaman me didawar paida !!!

Post a Comment

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...