
एक समय उत्तर भारत की सबसे सशक्त महिला रही बेगम का नाम अब शायद कम लोग ही जानते हैं । दिल्ली के चांदनी चौक स्थिति बेगम समरू के महल में एक समय बुद्धिजीवियों, रणनीतिकारों और कुछ रियासतों के लोग विचार विमर्श करने आते थे लेकिन आज उस महल की वर्तमान हालत देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह कभी उनकी हवेली रही होगी। दिल्ली के चांदनी चौक इलाके के अंदर तंग गलियों से होकर किसी तरह वहां पहुंच भी जाएं तो उसकी हालत देखकर यह नहीं कह सकते कि यह कभी कोई हवेली रही होगी।
यहां गंदगी के बीच खड़ा है दिल्ली पर्यटन विभाग द्वारा लगाया गया बोर्ड जो इस महल के बारे में जानकारी दे रहा है। लेकिन दिलचस्प यह है कि यह जानकारी आधी-अधूरी ही नहीं बल्कि गलत भी है। यहां दी गई जानकारी दो भाषाओं में है। हिन्दी में जहां इसे 1980 में भगीरथमल द्वारा खरीदा गया बताया गया है वहीं अंग्रेजी में उन्हीं के द्वारा 1940 में खरीदा गया बताया गया है।
समरू के बचपन का नाम जोन्ना या फरजाना भी बताया जाता है लेकिन वह बेगम समरू के नाम से ही प्रसिद्ध हुई। ‘समरूज् नाम के बारे में जहां इंडियन आर्कियालॉजिकल सर्वे (एएसआई) ने उनके फ्रेंच शौहर वाल्टर रेनहार्ड साम्ब्रे से माना है जो भारत में ब्रिटिश शासन में भाड़े का सिपाही था, वहीं स्टेट आर्कियॉलाजी ने समरू नाम का संबंध सरधना (मेरठ ) से माना है।
इस महल के कुछ हिस्से अपने समय की कला को अब भी समेटे हुए हैं। यूनानी स्तम्भों से सजे बरामदे की अपनी खूबसूरती है लेकिन वहां पर हुए अतिक्रमण के कारण इसे ठीक तरह से देखा नहीं जा सकता। एक दिलचस्प बात और है कि वर्तमान में इसका नाम भगीरथ पैलेस है लेकिन एक दुकानदार ने बताया कि दुकान के किराए की रसीद किसी रस्तोगी परिवार के नाम से कटती है। इस महल की उपेक्षा का यह आलम है कि बाहरी लोगों को छोड़िए स्थानीय लोगों को भी इसके बारे में ठीक से पता नहीं है। इस ऐतिहासिक इमारत की देखरेख और संरक्षण के बारे में प्रशासनिक अधिकारी भी कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं।
कश्मीरी मूल की बेगम समरू का जन्म 1753 में मेरठ के सरधना में माना जाता है। जो 1760 के आसपास दिल्ली में आई। बेगम समरु पर लिखी किताब ‘बेगम समरू- फेडेड पोर्टेट इन ए गिल्डेड फार्मज् में जॉन लाल ने लिखा है कि ‘45 वर्षीय वाल्टर रेनहर्ट जो यूरोपीय सेना का प्रशिक्षक था। यहां के एक कोठे पर 14 वर्षीय लड़की फरजाना को देखकर मुग्ध हो गया और उसे अपनी संगिनी बना लिया।ज्
बेगम समरू के बारे में कहा जाता है कि वह राजनीतिक व्यक्तित्व और शासन का कुशल प्रबंधन करने वाली महिला थी। शायद यही कारण था कि एक पत्र में तत्कालीन गवर्नर लार्ड बिलियम बैंटिक ने उन्हे अपना मित्र कहा और उनके कार्य की प्रशंसा की। बेगम समरू को सरधना की अकेली कैथोलिक महिला शासिका भी कहा जाता है। इस महल में 40 साल से दुकान कर रहे बुजुर्ग ने बताया कि इस महल के अंदर से सुरंग लाल किले से मिलती है जिसके रास्ते हाथी-घोड़े और सैनिक जाते थे और इस महल के चारो ओर तेरह कुंए थे। जिससे महल के समीप बागों को पानी दिया जाता था। इतिहासकारों का मानना है कि बेगम ने 18वीं और 19वीं शताब्दी में राजनीति और शक्ति संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक राजनीतिक जीवन व्यतीत करने के बाद उसकी मृत्यु लगभग 90 साल की आयु में सन 1836 में हुई। लेकिन इस ऐतिहासिक इमारत में अब कई रखवारे हैं सबका अपना स्वार्थ है लेकिन महल की दुर्दशा पर स्टेट आर्कियोलाजी भी मौन है।
2 comments:
कितनी ही ऐसी इमारते रो रहीं हैं आज बेआबरु हो कर...
फिर कहता हूँ, इतिहास के पन्ने पुनः-पुनः संवार रहे हो आप...
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