Wednesday, November 11, 2009

एक उन्वान....



इंडिया गेट।
जमघट सैलानियों का।
एक उन्वान।
एक आनंद।
एक खुशी।
दस्तक गुलाबी सर्दी की।
और मौसम भी खुशनुमा।
चाह।
कैद कर लें हर पल।
क्षण।
प्रतिक्षण।
ले जाएंगे साथ।
संजोकर।
सहेजकर।
यह कोशिश।
काश!
कायम रहे।
ऐसे ही शांति।
आएं ऐसे ही सैलानी।
जो निहारे इंडिया गेट।
और उन्हे देख, सूरज भी ढलने में करे ढिठाई..

2 comments:

Dr. Shreesh K. Pathak said...

और उन्हे देख, सूरज भी ढलने में करे ढिठाई..

वाओ! क्यूं नहीं क्यों नहीं....अच्छी लगी तात...ये कविता..

हरकीरत ' हीर' said...

सहेजकर।
यह कोशिश।
काश!
कायम रहे।
ऐसे ही शांति।
आएं ऐसे ही सैलानी।
जो निहारे इंडिया गेट।
और उन्हे देख, सूरज भी ढलने में करे ढिठाई..

सुंदर तस्वीर ....!

सर्दी की सुगबुगाहट और सैलानियों चल कदमी पर अति सुंदर bhav.....!!

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एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...