Wednesday, February 24, 2010

सुरों की बारिश में भीगे श्रोता



मैं कई दिनों से कोशिश कर रहा था कि गिरिजा देवी की कजरी या ठुमरी सुनने जाऊं। जब वह दिल्ली में होती तो मुङो कोई न कोई काम आ ही पड़ता। सोमवार को अचानक पता चला कि गिरिजा देवी शहर में हैं दिल्ली विश्वविद्यालय में स्पिक मैके ने उनका कार्यक्रम आयोजित किया है। बस क्या था मुखर्जी नगर में रहने वाले रसिक मित्र सुशील जी को यह सूचना दी और जसा कि मुङो उम्मीद थी वह बिना शर्त तैयार हो गए। हालांकि मेरी तबीयत कुछ नासाज थी और मानसिक रूप से भी कुछ परेशानी महसूस कर रहा था। बहरहाल निर्धारित समय के भीतर सुशील पहुंच गए थे हमने आयोजन स्थल भी ढूंढ लिया था। हम समय से लगभग 1.15 मिनट पहले आ गए थे लेकिन इंतजार खल नहीं रहा था क्योंकि सभागार में गिरिजा देवी का ही स्वर आडियो माध्यम से गूंज रहा था। इंतजार का पल खत्म हुआ और मंच पर गिरिजा देवी उपस्थित हुई। अंदाज वही ठेठ बनारसी, स्वर भी वही। हम मंच पर 81 वर्षीय जवान महिला को देख रहे थे और उनमें स्थित ऊर्जा हमें आकर्षित कर रही थी। पात्र परिचय के बाद कार्यक्रम शुरू हुआ।
उन्होने जब राग यमन में बिलंबित और ध्रुत स्वर में तुम तो करत बरजोरी, रे लला तुम से खेलत होरी। सुनाना शुरु किया तो हाल में बैठे श्रोता सुरों के रंग से सराबोर हो गए। उनके साथ संगत कर रहे तबला पर जयशंकर की अंगुलिया तराने के साथ संगीत के आनंद को चरम पर पहुंचा रही थी। संगीत की तकनीकियों से अंजान श्रोता भी एक-एक थाप को महसूस कर रहा था। देशी विदेशी श्रोताओं से भरे हाल में लोग शांत चित्त होकर संगीत का आनंद ले रहे थे। गिरिजा देवी ने बीच-बीच में युवाओं को भारतीय संगीत और सभ्यता के करीब जाने की बात कही और कहा कि भारत इससे और भी आगे बढ़ सकता है। उन्होनें इस ओर भी संकेत किया कि किस तरह संगीत के लिए उन्होने संघर्ष किया। और उनके मन की ताकत और साहस से वह आज इस मुकाम पर हैं। कार्यक्रम की एक प्रस्तुति के बाद गिरिजा देवी अगर सुरों की बारिश से श्रोता खुद ब खुद खिंचे चले आए।
आमतौर पर जहां बड़े कलाकार ऐसे कार्यक्रमों में निर्धारित समय के बाद प्रस्तुति नहीं देते लेकिन वहीं गिरिजा देवी ने श्रोताओं से पूछा और संचालक के अनुरोध पर एक कजरी सुनाई इस हिदायत के साथ कि अगर बारिश हुई तो उसकी जिम्मेदारी उनकी नहीं होगी। बारिश हुई भी लेकिन सुबह। लेकिन इस बीच जो सुरों की बारिश हुई उससे मन सराबोर हो गया। पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोक धुन पर आधारित होरी सुनाकर दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। तबले की थाप, सारंगी की तान और हारमोनियम की स्वरलहरियों के बीच गिरिजा देवी का स्वर पूरे माहौल को सुरमयी बना रहा था। अंत में दर्शकों की मांग पर गिरिजा देवी ने सिया संग झूले बगिया राम ललना सुनाया।
इस कार्यक्रम में तबले पर जयशंकर, हारमोनियम पर उमर खां, सारंगी पर मुराद अहमद खां और तानपूरे पर मौसमी ने उनका भरपूर सहयोग दिया।
चित्र- साभार गूगल

2 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत ही सुन्दर व लाजवाब प्रस्तुति लगी ।

Udan Tashtari said...

गिरिजा देवी -लाजबाब अनुभव तो होना ही था. बढ़िया लगा जानकर.

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एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...