Sunday, May 9, 2010

पुत्रो कुपुत्रो जायते माता कुमाता न भवती

माँ बस माँ होती है. उसके जैसा कोई नहीं. कितना दुःख सहा लेकिन कुछ नहीं कहा, यहाँ प्रस्तुत है कुछ वरिष्ठ लोगों से उनकी माँ के बारे में की गई बात. आइये जाने अपनी माँ को वो कैसे याद करते हैं.

मां के निकट रहा

राजेन्द्र यादव-
मैं अपनी मां के बेहद निकट रहा हूं। बाप से दूर रहा। पिताजी उस युग के थे जिनके घर में घुसते ही बच्चों को एकदम शांत हो जाना पड़ता था।
अब जब मैं याद करता हूं तो मां कम बाप ज्यादा याद आते हैं। मां महाराष्ट्र की थीं। उनसे हमारा दोस्ताना संबंध था। 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। आगरा आने पर उन्हें भाषा की समस्या आई। पहले उन्होंने यहां की भाषा साीखी लेकिन अंत तक वह ‘आदमी को ‘अदमी बोलती थी। एक दिलचस्प वायका याद आता है, जब भी कोई गलती करता था और बाहर आ जाता था तो मां अंदर से बुलाती थी । वह देहरी से बाहर नहीं जाती थी तो मैं कहता था कि ‘पिटने के लिए आऊंज्।

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दोस्त, गाइड, आलोचक


शोभना नारायण-
मेरी मां मेरी सबसे अच्छी दोस्त थीं आज मैं जो कुछ भी हूं वह अपनी मां कि वजह से ही हूं। वह केवल मां नहीं बल्कि मेरी गाइड, मेरी आलोचक और मुङो समझने वाली भी थी। डांस सीखने के पीछे भी मां थी। जब मैं महज ढाई साल की थी तो मां से यूं ही कह दिया था कि ‘मैं क्या करूंज्? इस पर मां ने कहा था कि ‘तुम नाचो यह उनका अनायास कहना था लेकिन मैंने जिद पकड़ ली। मां मुङो समीप के नाट्य विद्यालय में ले गई। उस शिक्षिका ने मुङो देखकर मां से बोली कि ‘ये क्या आप गोद का बच्चा लेके आई हैं? लेकिन मैंने नाचना सीखा। एक वाकया याद आता है कि जब पड़ोस में एक डांस कंपटीशन था और मैं अभी छोटी थी फिर भी मैं उसमें हिस्सा लेना चाहती थी। एक दिन पहले जब मैंने रिहर्सल देखी तो मेरे तो पसीने छूट गए। मां को बताया, मां ने मना किया लेकिन अब तुम्हारा डांस करना बंद। इससे मैं निराश हो गई। लेकिन मैंने उस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और प्रथम पुरस्कार जीता। उस दिन से आज तक मां के कारण ही नाच रही हूं।

परिवार की धुरी


उदय प्रकाश-
मैंने मां के बिना परिवार को बिखरते हुए देखा है। यह मेरे लिए आत्मपरक घटना है। मेरे पास बचपन में ही मां को खो देने का अनुभव है। इस पर मेरी एक कहानी ‘नेल कटरज् भी है। परिवार समाज की प्राथमिक इकाई होती है और मां इसमें केंन्द्रीय भूमिका में होती है। वह एक ऐसी डंठल है जिससे फूल की पंखुड़ियां जुड़ी होती हैं। मां ही होती है जो बच्चे को नौ महीने अपने गर्भ में रखती है, उसके लिए स्वप्न देखती है। उसके लिए मोजे और कनटोप बुनती है। प्रसव का परम दुखदाई क्षण सहती है। पैदा होने के बाद दो साल तक बच्चे की आंख, भंवे, चेहरे को संवारती है। मां भौतिक होती है।

हमारी हिम्मत भी मां


पं बिरजू महराज-
मां मेरे लिए सब कुछ थी। जब मेरी उम्र साढ़े नौ साल की थी तभी पिता का स्वर्गवास हो गया। उसके बाद से मेरी शिक्षा, नृत्य आदि के लिए उसने निरंतर प्रोत्साहन दिया। मेरी कला में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। हमारे गरीबी के दिनों में भी मां ने कभी हमारी हिम्मत नहीं टूटने दी। हमने कुछ समय कानपुर में भी बिताया। वहां 25 रुपए महीने की ट्युशन भी पढ़ाई। बहनों की शादी हो गई थी तो मां हमारे साथ ही रही। उनको गुजरे लगभग 20 साल हो गए हैं। उन्होंने हमेशा हमें ईमानदारी और सच्चाई की राह पर चलना सिखाया। उनकी अंतिम इच्छा थी कि वह गंगा किनारे अंतिम सांस लें और वह पूरी भी हुई। उन्होंने अंतिम सांस इलाहाबाद में ली।

जो सीखा मां से<
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किरण खेर-
अपनी मां से मैं काफी करीब से जुड़ी रही। पिछले साल उनका स्वर्गवास हुआ। आज तक जिन्दगी में जो कुछ भी सीखा उसमें मां का योगदान काफी महत्वपूर्ण था। वह एक प्रतिभाशाली स्टूडेंट,खिलाड़ी थी या यूं कहूं कि आल राउंडर थी। उनको चार बार युनिवर्सिटी में बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड मिला था। वह मेरी बहन के साथ चार साल बैटमिंटन खेली और जीता थी। वह एक अच्छी शिक्षिका भी थी। वह उर्दू की भी स्कालर थी। अक्सर मुङो डांटती थी लेकिन मेरे निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

जिंदगी के लिए वरदान


निदा फाजली-
मैं मां से बेहद करीब से जुड़ा था और इस संबंध में मैंने कोई 20 साल पहले लिखा था ‘मैं रोया परदेश में, भीगा मां का प्यार। दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।ज् मां एक रचनाकार है जिसका अपना रचना संसार है। मां आगे चलकर धरती हो जाती है। वह जिंदगी के लिए वरदान है। जिन्दगी के लिए उसके अलग-अलग रूप हैं। मेरी बहुत सी रचनाओं में मां रची-बसी है।

साथ गाई हंसध्वनि


बिंदू चावला-
हमारे घराने में अमीर खां साहब ने पिता जी को शिक्षा दी थी। हम सब रामकृष्ण आश्रम जाते थे। मां शारदा को हम मां मानते हैं। वह सरस्वती का रूप हैं और उन्हें भी मां के रूप में मानते हैंे। हमारे लिए वह पूज्यनीय हैं। मेरी अपनी मां किराने घराने की थी। बचपन में गाना मां के तानपुरे से ही सीखा और काफी दिनों तक बजाया। हर कलाकार के जीवन में मां की सबसे बड़ी भूमिका होती है। जब मैं गाती थी तो पिता जी अक्सर मां को चिढ़ाते थे कि जो बेटी गा रही है वह तुमसे हो पाएगा? फिर मां और हम साथ गाते थे। जब पहली बार मैंने गाया तो मां भी मेरे साथ मंच पर गाई।
हमने राग हंसध्वनि गाया। आज भी जब मैं हंसध्वनि गाती हूं तो उसका रिस्पांस सबसे अधिक मिलता है।

बहुत मीठी यादें


कैलाश वाजपेई-
मां का मतलब केवल यही नहीं है कि उसने जन्म दिया है। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि। यह संदेश है कि पहले मां फिर मातृभूमि। समय बदलने के साथ चीजें बदली। सभ्यता विकसित होती गई और संस्कृति सिकुड़ती गई। अब सांस्कृतिक शालीनता की बातें बेकार हो गई हैं। भूमंडलीकरण के दौर में मूल्य गड्मगड्ड हो गए हैं। तीर्थस्थान पर्यटनस्थल में बदल गए हैं। पारिवारिक संबंध निस्पंद हो गए हैं।
लेकिन मेरी मां की यादें बहुत मीठी हैं। कई वर्षो बाद जब मैं दिल्ली लौटा तो लखनऊ से मेरी मां मेरे भाई, पिता आदि से झगड़ कर अपने बचाए हुए पैसे और कुछ साड़ियां लेकर दिल्ली आई। वह उन लोगों से कहती थी कि मुङो ‘मान्याज् के पास जाना है लेकिन एक दिन वह बिना किसी को बताए दिल्ली आ गई। जब मैंने उन्हे अपने यहां देखा को मैं दहाड़ मारकर रोने लगा। मुङो दुख है कि जब मेरी मां का स्वर्गवास हुआ तो वह मैं रूस के जंगलों में कहीं किसानों के पास रहा हूंगा क्योंकि उसके स्वर्गवास की खबर मुङो नहीं मिली। मेरी छोटी बहन बताती है कि वह मुङो अंतिम समय में बहुत याद करती थी। मुङो लगता है कि मेरे लिए यदि सबसे अधिक कोई रोया होगा तो वो मां थी।

सुरीली, सरल और दयालु<
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साजन मिश्र-
हम इस मामले में बहुत सौभाग्यशाली हैं कि मां ने हमें अगाध प्रेम दिया। वह हम दोनों भाइयों को साथ ही सुलाती थी। मेरे घर के पास कबीर जी का मंदिर था। वहां पर सुबह पांच बजे घंटी बजते ही मां जगा देती थी। उन्होने संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी लेकिन सुन कर वह गाती थी । वह हमें राग अहीर भैरव, ललित आदि की बंदिशे सुनाती थी। वह दयालु और सहज भी थी। मां हमें खूब रियाज करवाती थी। वह ढोलक भी बजाती थी। सुरीली भी थी। हम लोग पिताजी से डरते थे। मां हमें गलतियों पर डांटती थी लेकिन कभी मारा नहीं । हम इस बारे में सौभाग्यशाली हैं कि मेरी चाची ने भी हमें मां के समतुल्य प्रेम दिया। मां और चाची देवरानी-जेठानी थी लेकिन हमेशा बहन जसी रही। इसका ही प्रभाव है कि हम दोनों भाइयों की पत्नियां बिल्कुल बहन जसी रहती हैं।


1 comments:

पा.ना. सुब्रमनियन said...

माँ पर विभिन्न हस्तियों के विचार संग्रहीत कर प्रस्तुत करने के लिए आभार.

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