Monday, May 10, 2010

खारी बावली, अब बस नाम बचा है

शाहजहां की विरासत चांदनी चौक और उसी के समीप खारी बावली। भारत के प्रसिद्ध मसालों, राशन और अन्य चीजों की मंडी। यहां की हर चीज मशहूर है और कभी यहां स्थित बावली भी इतनी ही मशहूर थी जिसका पानी खारा होता था ऐसा स्थानीय लोग कहते हैं। शायद इसीलिए इस जगह का नाम खारी बावली पड़ा। हालांकि अब बस नाम ही बचा है। यहां बावली का कोई नामोंनिशां नहीं है। इस भीड़ भरी बाजार का एक सिरा फतेहपुरी मस्जिद को छूता है। जहां से मेवों की दुकानें शुरू होती हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस सड़क से गुजरने के बाद आज भी एक ठंडक का अहसास होता है।
मेवे की दुकान किए लगभग (75) वर्षीय मूलचंद का कहना है कि कई साल पहले यहां से एक नहर गुजरती थी ऐसा लोग बताते हैं लेकिन बावली किसी ने नहीं देखी। अब बस नाम बचा है। इसी तरह देसी दवाओं के विक्रेता एखलाक का कहना है कि हो सकता है कि यहां किसी कटरे में बावली रही हो लेकिन आज तो उसका कोई अवशेष भी दिखाई नहीं देता। इतिहासकारों का मानना है कि यह बाजार 500 साल पुराना है और यहां बारहों महीने भीड़ लगी रहती थी।
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गलियों से जुड़े इस बाजार में अब भी हर कटरा या बाजार विशेष गंध से अपनी पहचान कराता है। तिलक बाजार में जहां केमिकल और इत्र की खुशबू आती है वहीं गली बाताशान में अचार मुरब्बे और मसालों की, नया बोस में साबुन, पान मसाला आदि दिखेगा तो नया बोस में प्लास्टिक और पत्तल। यहां पर्यटक और खरीदार निरंतर आते रहने से यह दिल्ली का एक भीड़ भरा इलाका है। लेकिन दिलचस्प यह है कि यहां किसी को भी बावली के बारे में जानकारी नहीं है। इंटैक की दिल्ली चैप्टर की सह संयोजक और 19वीं सदी की दिल्ली पर शोधकर्ता स्वप्ना लिडल का कहना है कि यहां की बावली 19वीं सदी के पहले थी। और इस बावली का निर्माण शाहजहांनाबाद के बनने से पहले हुआ था। फोरसी किताब ‘सैर उल मुनाजिलज् के आधार पर उन्होंने कहा कि यहां स्थित बावली का निर्माण 1551 ईस्वी में शेरशाह के बेटे इस्लाम शाह ने कराया था। संभवत: यह मुख्य सड़क के आसपास रही होगी। इसी समय हौजवाली मस्जिद भी बनी थी जो आज भी है। शेरशाह सूरी के समय भी आम नागरिक की सुविधाओं के लिए बहुत से काम हुए थे। उन्होंने बताया कि उस किताब में इसका जिक्र है लेकिन एएसआई ने इस तरह की किसी बावली को चिह्न्ति नहीं किया है। ऐसा अनुमान है कि एएसआई के नामांकन से पहले ही इस बावली का अस्तित्व खत्म हो गया हो।


4 comments:

पा.ना.सुब्रमनियन said...

खारी बावली के बारे में आपकी जिज्ञासा को हम नमन करते हैं. इस्लाम शाह सूरी का मुख्यालय बुंदेलखंड के जतारा नामक जगह में था.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अच्छी पोस्ट,
एक बार मैने भी पैदल घुमते घुमते सोचा था कि
नाम खारी बावली है, बावली कहीं आस पास होगी।
लेकिन आपने तथ्यपरक जानकारी देकर समाधान कर दिया।

आभार

डॉ टी एस दराल said...

बहुत भीड़ भाड़ वाला इलाका है भाई ।
आपने गलियां का वर्णन सही किया है ।

Anonymous said...

bhut thik jankari hai

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एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...