अभिनव उपाध्याय
भारत में क्रिकेट एक चस्का है लेकिन कब तक? इस सवाल का जबाब आपको जंतर मंतर पर अन्ना के समर्थन में उतरे युवाओं से मिला। क्रिकेट के बुखार से तपता युवा अब अन्ना के समर्थन में अप्रैल की धूप में तपता रहा। वह गला फाड़-फाड़ कर कहता रहा- ‘अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं। अन्ना के सर्मथन में युवाओं ने अलग-अलग रूप से अपने को अभिव्यक्त किया। कोई नाचा, कोई ताली बजाता रहा और कुछ लोग झंडा लहराते रहे। ऐसा लगता रहा कि देश का युवा अन्ना के इस यज्ञ में अपनी आहुति देना चाहता है।
जामिया मिलिया इस्लामिया में बीबीए द्वितीय वर्ष का छात्र हेनरी अपनी बांह पर ‘नो टाइम फार आईपीएल, इट्स अन्ना टाइमज् लिखकर अन्ना के समर्थन में जंतर-मंतर पर घूम-घूम कर लोगों को प्रोत्साहित किया। भ्रष्टाचार के खिलाफ, अपने अधिकार के लिए। उसका कहना है कि अन्ना के लिए यह केवल उसकी अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि उसका और उसके साथ कुछ और लोग हैं जिन्हे आज आईपीएल से अधिक अन्ना की जरूरत है। क्योंकि क्रिकेट से पहले देश है। जब भारत वर्ल्ड कप जीतता है तो पचास हजार लोग इंडिया गेट पर आ सकते हैं तो देश के लिए क्यों नहीं? क्या युवाओं में यह बदलाव जेपी के आंदोलन जसा नहीं लगता? अब युवा आगे आ रहा है, देश का भावी कर्णधार आगे आ रहा है, और बदलाव के लिए हमेशा युवा ही आगे आया है। हां, माध्यम गांधी, जेपी या अन्ना हो सकते हैं।
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