Sunday, May 8, 2011

करिश्मा बिन जवाहिरी

अरुण कुमार त्रिपाठी

अल जाहिरी लादेन की तरह से करिश्माई नेता नहीं हैं। हाल में उन पर यह भी आरोप लग रहा है कि ओसामा बिन लादेन के मराने में उनका हाथ है। यह आरोप सऊदी अरब के अखबार अल तन ने अरब सूत्रों के हाले से लगाया है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी भी इसी तरह की बात कर रही है। अल तन का कहना है कि vaजीरिस्तान के कबीलाई इलाकों से एबटाबाद के शहरी इलाकों में लादेन के जाने का फैसला अल जाहिरी ने एक साजिश के तहत कराया था। इस बीच जिस संदेशाहक यानी कुरियर के माध्यम से लादेन का सुराग मिला है ह भी जाहिरी का ही आदमी बताया जाता है। यह भी कहा जा रहा है कि आम धारणा के पिरीत ह कुैती नहीं पाकिस्तानी था। साजिश के इस सिद्धांत के तहत जाहिरी ने ओसामा का सफाया कर संगठन पर कब्जा करने की नीयत से यह सब किया था और आखिर में उसमें कामयाब भी हो गया। पर अल कायदा के इन दो करीबी नेताओं में झगड़े और इस हद तक साजिश होने की बात को अमेरिकी एजेंसियां स्ीकार नहीं कर पा रही हैं। यहां यह साल भी उठता है कि सन 2004 में बीमार हुए ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद भेजने की योजना अगर जाहिरी ने बनाई थी तो यह कबीलाई इलाके के मुकाबले उसे सुरक्षित जगह पर भेजने की कोशिश कैसे नहीं कही जाएगी?
लेकिन अल जाहिरी के प्रति अश्विास ही उन्हें अल कायदा का प्रमुख बनने से रोक सकता है, रना उनमें े सारी योग्यताएं हैं जो उन्हें इस जिम्मेदारी का स्त: उत्तराधिकारी बना देती हैं। आमतौर पर संगठन का उसूल नंबर दो के व्यक्ति पर ही यकीन करने का है। ह करिश्माई भले न हों लेकिन एक आतंकादी संगठन के नेता के तौर पर उनकी योग्यता और कुशलता का बार-बार प्रमाण मिल चुका है। ह आतंकादी हमलों के शेिषज्ञ ही नहीं इस्लाम के धर्मशास्त्र के द्विान भी हैं। एक डिग्री धारी सर्जन के तौर पर अपना कैरियर शुरू करनेोले जाहिरी अमेरिका सहित दुनिया के बड़े हिस्से में घूम चुके हैं और उन तमाम इलाकों के मुसलमानों से उनका संपर्क है, जहां पर किसी तरह का टकरा और समस्याएं हैं। बल्कि धार्मिक चिारों के मामले में े लादेन से ज्यादा कट्टर और स्पष्ट बताए जाते हैं।
हिंसक तरीकों में उनकी क्रूरता और आस्था लादेन से भी ज्यादा है। कहा जाता है कि पिछले छह सालों से लगभग निष्क्रिय जीन जी रहे ओसामा बिन लादेन की जगह पर संगठन के पीछे असली दिमाग उन्हीं का है। हमलों की रणनीतियां बनाना, लोगों को संगठित करना और संगठन को ैचारिक आधार देने का काम उन्हीं के जिम्मे था। बीच-बीच में उनके भी टेप जारी होते रहे हैं। जाहिरी के सामने चुनौती यह है कि अमेरिका की नजरों से बचते हुए कैसे े अपने अलकायदा में नई जान फूंकते हैं और कैसे क्रांति के उन हिंसक और कट्टर सिद्धांतों को प्रासंगिक बनाते हैं जिनको उन्हीं के मूल देश की जनता नामंजूर कर चुकी है। मिस्र की राजधानी काहिरा के उपनगरीय इलाके में एक पढ़े-लिखे परिार में 1951 में जन्मे अयमन अल जाहिरी को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का अच्छा माहौल मिला और उन्होंने उसका लाभ भी उठाया। उनके पिता फार्माकालोजिस्ट और रसायन शास्त्र के प्रोफेसर थे। उनके पिता के परिार में ज्यादातर द्विान थे और मां के परिार में राजनेता और संपन्न व्यापारी। लेकिन मिस्र की स्थितियों ने बहुत जल्दी ही उन्हें राजनीति की तरफ ठेल दिया। े 14 साल की उम्र में ही मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्य बन गए और पढ़ाई लिखाई के साथ अमेरिका और इजराइल के प्रति नरम रुख रखनेोली सरकार का तख्ता पलटने की तैयारी में लग गए थे। उन्हें इस काम के लिए उनके चाचा और एक शिक्षक ने प्रेरणा दी। उसके बाद कुत्ब नाम के एक नेता को जब मिस्र की सरकार ने 1970 के दशक में फांसी दी तो जाहिरी ने तय किया कि े उनके संदेश को ही आगे बढ़ाएंगे।
अपने देश और दुनिया की समस्याओं का समाधान इस्लामिक शुद्धता और उसके शासन की स्थापना में देखनेोले जाहिरी के जीन में असली बदला तब आया जब 1984 में हज करने गए सऊदी अरब गए और हां उनकी भेंट ओसामा बिन लादेन से हुई। फिर े हीं रुक कर डाक्टरी करने लगे। इससे पहले े इजिप्ट इस्लामी जेहाद में सRिय हो चुके थे और उन्हें तीन साल की सजा हो चुकी थी। इस मुलाकात में लादेन ने उन्हें प्रभाति किया और उनकी अगली मुलाकात 1986 में पेशार में उस समय हुई जब े हां सोयित फौजों से लड़ते हुए घायल अफगानी शरणार्थियों का इलाज करने में जुटे थे। उस समय लादेन हां जेहादी शिरि चला रहे थे। उन्होंने नब्बे के दशक में अपने संगठन ईआईजे का लादेन के संगठन अल कायदा में लिय कर दिया।

े लादेन के सहयोगी ही नहीं निजी फिजीशियन के तौर पर भी रहे और 9/11 के बाद जब अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमला हुआ तो लादेन के परिार को सुरक्षित ईरान पहुंचाया। एक दौर में अल जाहिरी ईरान के एजेंट के तौर पर भी काम करते रहे हैं और उसे यह बताते रहे हैं कि उसके किन द्वीपों पर मिस्र कब्जा करने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए ईरान ने उन्हें 20 लाख डॉलर दिया था। लेकिन जाहिरी र्साजनिक तौर पर ईरान की कड़ी निंदा करते रहे हैं।
अल जाहिरी को करीब एक दर्जन नामों से जाना जाता है। उसमें अबू मोहम्मद, अबू फातिमा, मोहम्मद इब्राहीम, अबू अबदालेह, अबू अल मुइज, द डाक्टर , द टीचर, नूर, अबू मोहम्मद, नूर अलदीन, अब्दुल मुआज प्रमुख हैं। उसकी एक ही शादी हुई है और पत्नी अब नहीं हैं। उससे पांच बच्चे हैं जिनमें एक बेटा और चार बेटियां हैं। बेटा बेहद शिष्ट और शालीन है और लड़कियों को जेहाद में शामिल करने के पक्ष में जाहिरी खुद भी नहीं हैं। जाहिरी मुख्य तौर पर 9/11 के बाद जब चर्चा में आए और अमेरिका ने दुनिया के 22 प्रमुख आतंकियों की सूची में उनका नाम जारी किया, तो उनकी पत्नी ने हैरानी जताते हुए कहा कि उन्हें इस बात की बिल्कुल भनक तक नहीं थी कि उनके पति जेहादी हैं। अल जाहिरी पाकिस्तान की लाल मस्जिद पर हुए हमले के पीछे भी रहे हैं और उससे पहले अमेरिकी दूताासों पर हुए हमलों में भी उनकी योजना रही है।
अल जाहिरी के साथ एक ही बात सही है कि उन्होंने इस्लामी दुनिया की तकलीफों को देखकर अपना जीन जोखिम में डाल लिया। लेकिन इजिप्ट इस्लामी जेहाद, अलकायदा तो आजकल अलकायदा इन द इस्लामी मगरिब के सहारे मुसलमानों की आजादी और अमन की तलाश कर रहे जाहिरी एक आत्मघाती नजरिए के साथ मौत के पीछे भटक रहे हैं। लादेन की तरह ही उनका अंत तय हो चुका है बस उसे े कब तक टाल पाते हैं यही उनकी कुशलता है।

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