Tuesday, August 9, 2011

नहीं रहा ध्रूपद का धुरंधर


अभिनव उपाध्याय
अद्भुत आलाप की शक्ति, सहजता एंv पारंपरिक बंदिशों से शास्त्रीय गायक उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर किसी परिचय के मोहताज नहीं थे। गुरुवार 27 जुलाई को उनका देहावसान हो गया। संगीत मर्मज्ञों का मानना है कि उनकी मृत्यु से शास्त्रीय संगीत जगत को गहरी क्षति पहुंची है।
अलर, राजस्थान में 1927 में जन्में उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर ध्रुपद संगीतज्ञों के प्रतिष्ठित घराने से ताल्लुक रखते थे। संगीत में उनकी प्रारंभिक दीक्षा अपने प्रसिद्घ पिता उस्ताद अल्लाबंदे रहीमुद्दीन खान डागर से हुई, आगे चलकर उस्ताद नसीरूद्दीन डागर, इमामुद्दीन डागर एं हुसैनुद्दीन डागर के संरक्षण में प्रशिक्षित हुए थे। उन्होंने जियाउद्दीन खान डागर से र्रूीणा मे प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था।
ध्रुपद के महान गुरूओं के बीच उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर अपने आलाप की शक्ति, सहजता एं पारंपरिक बंदिशों के समृद्घ संग्रहण के कारण जाने गए, जिनमे से कुछ बारहीं एं तेरहीं शताब्दियों की हैं। संगीत साधना के सुदीर्घ जीन में े अपने राग-स्तिार एं लय-ताल पर प्रीणता उनमें अदभुत थी।
आल इंडिया रेडियो एं दूरदर्शन के नैत्यिक कलाकार रहें उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर ने देश के अलावा विदेशी आयोजनों में भी अपनी अमिट छाप छोड़ देने वाली प्रस्तुतियां दीं।
एक प्राध्यापक के रूप में उस्ताद जी ने रीन््र भारती श्ििद्यालय, कोलकाता में अध्यापन भी किया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन््र ने उनकी कला पर शिष्ट प्रलेखन भी तैयार किया। उनके बारे में शास्त्रीय संगीत के बनारस घराने के प्रसिद्ध गायक पंडित राजन मिश्र का कहना है कि उनका न रहने से शास्त्रीय संगीत जगत में एक परंपरा का अवसान हो गया है। मैं इसे अपनी व्यक्तिगत क्षति भी मानता हूं। हमसे उनका बहुत प्रेम था हमने कई बार साथ-साथ अपनी प्रस्तुतियां दी। सही मायने में ध्रुपद का अंदाज उनके पास था। उनका निधन ध्रुपद के एक महान स्तंभ का समाप्त हो जाना है। अब उनके सिखाए गए लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वह उनकी परंपरा को आगे बढ़ाएं।
अपनी उत्कृष्ट संगीतज्ञता के लिए उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर र्ष 1993 में संगीत नाटक अकादेमी सम्मान, र्ष 1996 में साहित्य कला परिषद् सम्मान, र्ष 2002 में बिहार ध्रुपद रत्न सम्मान, र्ष 2003 में राजस्थान संगीत नाटक अकादेमी सम्मान एं र्ष 2008 में पद्म भूषण से सम्मानित किये गये। हिन्दुस्तानी संगीत में उल्लेखनीय योगदान के लिए इस र्ष उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर को संगीत नाटक अकादेमी का रत्न सदस्य चुना गया। संगीत नाटक अकादेमी की उपाध्यक्ष शांता सरबजीत ¨सह का मानना है कि डागर साहब ने ध्रुपद की अनगिनत पीढ़ियों की परंपरा को न केवल जीवित रखा बल्कि बतौर एक धरोहर उन्होने हमें सौंपा। उनके निधन से भारतीय शास्त्रीय गायकी को गहरी क्षति पहुंची है।
प्रसिद्ध संतूर वादक पं भजन सोपोरी उनसे आत्मिय लगाव था उनका कहना है कि संतूर वादक पं भजन सोपोरी का कहना है कि डागर साहब में जो लगन 50-60 के दशक में थी उसी लगन,तालीम के साथ उसी सिद्धता को उन्होने बरकरार रखा। उन्होने एक शैली के साथ राग की ऐतिहासिकता पर काम किया। वह एक ही थे जो ध्रुपद के महान फनकार थे। मुङो याद है पिछले वर्ष नवंबर में हमारा उनके साथ बनारस में अंतिम कंसर्ट था। उनका न होना एक बड़ी क्षति है।
लेखक संगीतज्ञ पं विजय शंकर मिश्र का कहना है कि उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर ने न केवल अपनी परंपरा के सर्वाधिक विद्वान व श्रेष्ठ कलाकार थे। ध्रूपद के वह सबसे महत्वपूर्ण कलाकार थे। वह स्वामी हरिदास की परंपरा से जोड़ते थे और अपने नाम के साथ डागर लिखते थे। मुसलमान होते हुए भी उन्हे संस्कृत सहित अन्य भाषाओं का ज्ञान था वह धारा प्रवाह संस्कृत के श्लोक बोलते थे। गंगा जमुनी तहजीब के भी वह जबरदस्त हिमायती थे। उनका शुरूआती जीवन संघर्षमय रहा लेकिन कभी भारत छोड़कर विदेश जाना पसंद नहीं किए। उनको भारत से गहरा लगाव था।








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