Sunday, August 14, 2011

कुंजुम, एक अनूठा अंजुमन



रवीन्द्र त्रिपाठी


दिल्ली का हौ़ज खास विलेज अब गांव नहीं है। दिल्ली के कई दूसरे विलेज की तरह एक बेहद आधुनिक , बल्कि उत्तर-आधुनिक जगह हैं जहां के पार्क में आप शाम को प्रवचन के रूप में राम कथा भी सुन सकते हैं और अत्याधुनिक फैशन और कला के दर्शन भी कर सकते हैं। इसी हौज खास विलेज में कुंजुम कैफे है जो अपने तरह की अनोखी जगह है। यहां आप दिन भर बैठे रह सकते हैं और कोई आपसे कहने नहीं आएगा कि बहुत हो गया, अब उठ जाइए।
यहां आप कॉफी पी सकते हैं और कोई आपसे पैसा मांगने नहीं आएगा। और काफी भी पुराने कॉफी हाफस वाली बेस्वाद नहीं। बेहद स्वादिस्ट ब्लैक कॉफी बिस्कुट के साथ। हां बाहर निकलते समय़ एक पेटी में आप अपनी श्रद्धा के मुताबिक जितना पैसा डालना चाहे डाल सकते हैं।
आप दिल्ली के बियाबान में अकेले हैं तो यहां बैठे किसी शख्स से दोस्ती भी गांठ सकते हैं। या अपने दोस्तों के साथ यहां दिन भर बैठकर किसी मसले पर बात भी कर सकते हैं, पेंटिग या स्केचिंग भी।
शनिवार के लगभग साढे बारह बजे हैं और मैं कुजुम कैफे में प्रवेश करती हूं। चार पांच लोग ही हैं। मैं कुजुंम कैफे की शुरुआत करनेवाले अजय जैन से मिलना चाहता हू। मालूम होता है वो विदेश में हैं और कई दिनों के बाद आएंगे। लेकिन उनकी एक सहयोगी श्रुति से मुलाकात होती है। वे कुंजुम कैफ के बारे में थोड़ा सा बताती हैं और कुछ जानकारियां ईमेल करने के कहती हैं। मैं एक मोढे पर बैठ जाता हूं और किताबें पलटने लगता हूं। लकड़ी के कुछ रैक बने हैं जिनपर कुछ किताबें और पुरानी पत्रिकाएं पड़ी हैं। ज्यादातर किताबें और पत्रिकाएं यात्रा से संबंधित हैं। अजय जैन खुद भी एक यात्रा-लेखक हैं। जून 2010 में उन्होंने कुंजुम कैफे शुरू किया था। एक औपचारिक कैफे की परिकल्कना उनके मन में थी जहां किसी तरह का दबाव और तनाव न हो। जहां यात्राओं में रुचि रखने वाले लोग आपस में बतिया सकें और जानकारियां ले-दे सकें।
बहरहाल मोढ़े पर बैठे बैठे मैं फोटोग्राफी की एक किताब उठा लेता हूं। ये होमाई व्यारवाला नाम की महिला फोटोग्राफर पर आधारित है। होमाई भारत की पहली महिला फोटोग्राफर हैं जिनको बाजाप्ता सरकारी मान्यता मिली हुई थी। भारत की आजादी की लड़ाई और आजाद भारत के कई ऐसे फोटोग्राफ उनके लिए हैं जो अब लोकस्मृति के हिस्सा बन गए है।. खासकक पंडित जवाहर लाल नेहरू ऐसे फोटो उन्होंने लिए जो इतने आम फहम हो गए हैं कि किसी को याद नही कि वे किसके लिए हुए हैं। किताब पर हल्की नजर मारते हुए पाता हूं कि उनको इसका बात का गहरा दुख रहा कि 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला मंदिर में मौजूद होते हुए भी वे उनकी हत्या की तस्वीर नहीं ले पाईं जबकि उस दौरान वे हर रोज बापू के फोटो खींचतीं थीं। लेकिन 30 जनवरी 1948 को उनका मूड ऐसा हुआ कि वे फोटो नही ले सकीं। होमाई पारसी समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और गुजरात के नवसारी मै पैदा हुई थीं। हेनरी कार्तिए ब्रेसों और मार्गरेट बोर्के ह्वाइट की तरह होमाई भी फोटोग्राफी को कलात्मक बुलंदी तक ले गईं।
संयोग से मार्गरेट भी महिला फोटोग्राफर ही थीं। होनाई की जीवन की कहानी बड़ी रोमांचक है। अपने आखिरी वर्षो में वे दिल्ली छोड़कर चली गईं और गुमनाम सी रहीं।
कुजुंम कैफे की दीवारों को बड़े अच्छे फोटोटोग्राफ लगे हैं। बाघ और हाथी के नेचर फोटोग्राफ्स के साथ साथ आम जिंदगी के कई लम्हें यहां कैद हैं। आप इन्हें खरीद भी सकते हैं। शायद उनकी कमाई का एक यही जरिया है। हालांकि यह अनुमान ही है। श्रुति से यह बात मैं पूछता नहीं हूं। अजय जैन होते तो पूछता। फिलहाल जानकारी के लिए बता दिया जाए कि अगर आपकी फोटोग्राफी में रुचि हैं तो कुंजुम कैफे की तरफ आपको ऐसे मेंटर मिल सकते हैं जो आपको बेहतर फोटोग्राफर बनने के गुर दे सकें। हां, इसकी फीस होती है। यही नहीं अगर आप लेखक बनना चाहते तो भी कुजुंम कैफे की सेवाएं आपके लिए हैं। सिर्फ लिखने के लिए नहीं बल्कि अपनी किताब प्रकाशित करने के लिए भी। अजय जैन ने खुद भी अपनी एक यात्रा किताब लिखी और प्रकाशित की है। नाम है- `पीप पीप डोंट स्लीप’
कुंजुंम कैफे में अकेले बैठे लोग अक्सर अपने लैपटॉप पर काम करते दिखते हैं। यहां वाई फाई की सुविधा भी है। एक बीस-बाईस साल के एक नौजवान को मैं अपने लैपट़ॉप पर काम करते देखता हूं। मैं नौजवान के करीब जाता हूं और नाम पूछता हैं। पता चला वे गौरव चौहान हैं और पीतमपुरा में रहते हैं। यानी हॉजखास विलेज से लगभग बीस-पचीस किलोमीटर दूर से यहां आए हैं। वे महीने में एक दिन यहां जरूर आते हैं। गौरव भी यात्रा में काफी रुचि रखते हैं। वे खुद यात्रा का व्यवसाय शुरु करना चाहते हैं। गौरव बताते हैं कि इस समय भारत में यात्रा का व्यवसाय हर साल दस फीसदी के हिसाब से बढ़ रहा है लेकिन एडवेंचर स्पोर्ट्स का व्यवसाय पचीस फीसदी के हिसाब से बढ़ रहा है। स्कूबा डाइविंग और ट्रैकिंग जैसे ए़डवेंचर स्पोर्ट्स युवकों में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। कई ट्रैवल एजेंसी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। गौरव अपना ब्लॉग शुरू करने जा रहे हैं जिसमें एडवेंचर स्पोर्ट्स के बारे में जानकारियां दी जाएंगी।
अब आप पूछेंगे कि कुंजुम कैफे नाम कैसे पड़ा। तो आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्फीति वाले इलाके में कुंजुम नाम की एक घाटी है। उसी से यह नाम लिया गया है। वहां से चलते हुए मैं `पीप पीप डोंट स्लीप’ की एक प्रति खरीदता हूं।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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