महिलाओं के सामाजिक,राजनीति व उनके जीवन के अन्य पहलुओं पर अपनी निगाह रखकर भौगोलिक सीमा से परे जाकर उनके मन की टोह लेने में माहिर और अपने साक्षात्कार, कहानी, उपन्यासों के लिए विख्यात लेखिका नासिरा शर्मा को इस वर्ष हिंदी के लिए उनकी रचना पारिजात के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। प्रस्तुत है वरिष्ठ लेखिका नासिरा शर्मा से अभिनव उपाध्याय की बातचीत-
प्रश्न- यह उपन्यास आपकी अन्य कृतियों से कैसे भिन्न है?
उत्तर- इसके बारे में मैं क्या कह सकती हूं। मेरे हर उपन्यास का विषय अलग रहता है। इसमें मैंने लखनऊ और इलाहाबाद की पृष्ठभूमि को लिया है कि कैसे अवध की तहजीब बनी उसने लोगों को प्रभावित किया लेकिन अब वो चीज गायब हो गई है। इसमें मैं कर्बला, हुसैनी ब्राह्मण और आधुनिक जमाने की कोशिश को लेकर चली हूं।
प्रश्न-आपके और भी उपन्यास हैं लेकिन लेकिन पारिजात उपन्यास पर आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला, आप क्या कहना चाहेंगी?
उत्तर- मुझे तो पता भी नहीं था कि इस पर पुरस्कार मिलेगा। मेरे लिए ये ताज्जुब की बात हुई लेकिन मुझे किसी भी उपन्यास पर मिलता तो ऐसा ही लगता।
प्रश्न-आपका लेखन महिलाओं की दशा दिशा को लेकर भी है चाहे वह खाडी देश की हों या भारत की। आप दोनों देशों की महिलाओं की स्थिति में कितनी समानता या विभिन्नता देखती हैं?
उत्तर- पूरी दुनिया में भावनात्मक रूप से देखें तो महिलाओं की स्थिति एक जैसी ही है। आप चाहे जितने बहादुर हो जाएं लेकिन आपकी भावनाएं तो बहादुर नहीं हो सकती। आप औरत बनके मर्द की तमन्ना करते हैं और मर्द बनके ही औरत की तमन्ना करते हैं। अगर इस्लाम के नजरिए से देखिए तो खाडी के देशों महिलाओं को सब कुछ मिला है लेकिन आजादी नहीं मिली है जिसे हम आजादी कहते हैं। लेकिन हम सारी आजादी पाने के बाद भी दुखी हैं देश में दुष्कर्म उसी रूप में हो रहा है,धर्म की खेती उसी अंदाज से होती है। लेकिन यह भी सच है कि 20 फीसद औरतों ने जो चाहा वो हासिल किया है। ज्यादातर औरतें परेशान हैं। कहीं समाज, राजनीति और अन्य बंदिशें महिलाओं के लिए है। उनकी तकलीफों को समझना मुश्किल है।
प्रश्न- आपने विभिन्न विधाओं में लिखा है, किस विधा में अपने को सहज पाती हैं?
उत्तर- इधर दस बारह सालों में मैंने एक या दो कहानियां लिखी हैं ज्यादातर मेरा समय उपन्यास लेखन में जा रहा है। अगर मैं ये कहूं कि कहानी लिखने में तत्काल आनंद मिलता है लेकिन उपन्यास में अपने आप को उसमें डालना पड़ता। उसके किरदारों के नाम याद रखता आदि काफी मुश्किल काम है।
प्रश्न- पूरे विश्व में आतंकवाद की चर्चा है, एक समूह इसे इस्लामिक आतंकवाद का नाम देता है इसमें महिलाओं की संलिप्तता भी सामने आई है? इसे किस तरह से देखती हैं?
उत्तर- महिलाएं तो खुद समझ रही हैं कि जहां पर अंकुश ज्यादा है वहां भी वह शामिल हैं। मामला सियासी हो या धार्मिक वह पीछे नहीं रह गई है। वह घर में भी भागीदार थी और बाहर भी लेकिन पुरुषों से दुगनी हालत में महिलाएं परेशान हैं। क्योंकि उसके साथ परिवार जुडा है समस्याएं जुडी हैं। यह समय दुख के गीत का समय है।
प्रश्न- यह दुख के गीत का समय है?किस संदर्भ में यह कह रही हैं?
उत्तर- यदि आपका नजरिया वहां जाता है जहां जंग ज्यादा है फसाद हो रहा है तो आपको लगेगा कि बाकी कुछ नहीं है केवल जंग है। मैं ज्यादातर उनके बीच उठती बैठती हूं जहां दुख के साए मंडराते हैं इसलिए मैं ऐसा कह रही हूं और वही मेरे लेखन भी आता है।
प्रश्न- आपने आजाद भारत को बढते हुए देखा लेकिन भूमंडलीकरण के बाद एक अलग तरह का भारत दिख रहा है? इसमें महिलाएं कहां है?
उत्तर- पहले सादगी थी,रिश्तों को लेकर पुरानी कैफियत ज्यादा लोगों में थी। लेकिन बाद में बाजार के पनपने का असर लोगों ने तेजी से लिया और इससे चीजें बहुत रंगीन और शोर शराबे वाली हो गई। धीरे धीरे जब सियासत रंग दिखा रही है तो वह आम आदमी के फायदे में नहीं जा रही है। आम आदमी भयभीत भी है, परेशान भी है और उसको इंसाफ नहीं मिल रहा है। अगर सफाई है तो कूडा आपके घर के सामने रख देते हैं, यदि सरकारी पानी आपके घर के ऊपर गिर रहा है तो एक बोरी सीमेंट की व्यवस्था नहीं हो पा रही है।
पुल,सिनेमाहाल, मॉल बनने से क्या होता है। दूसरा पक्ष भी ऐसे भी कैसे संतुलित हो यह भी देखा जाना जरूरी है। दो रोटी खाकर लोग सकून से जी तो सकें। यह सिलसिला किसी एक सरकार से जुडा नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति का एक अजीब सा अंग बनता जा रहा है। सब सहो और चुप रहो। हमारे समाज का नैतिक पतन बहुत हुआ है। मानवता धीरे धीरे कम हो गई है।
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कौन हैं नासिरा शर्मा
नासिरा शर्मा का जन्म 1948 में इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने फारसी भाषा और साहित्य से एमए किया। हिंदी, उर्दू,पश्तो एवं फारसी पर उनकी गहरी पकड है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला व संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान व भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ उन्होंने साक्षात्कार किए जो बहुत चर्चित हुए। सर्जनात्मक लेखन में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है।
2008 में अपने उपन्यास कुइयाँजान के लिए यूके कथा सम्मान से सम्मानित किया गया। अब तक दस कहानी संकलन, छह उपन्यास, तीन लेख-संकलन, सात पुस्तकों के फ़ारसी से अनुवाद हो चुका है।
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