Monday, September 6, 2010

नालंदा का महास्वप्न


प्रखर प्रकाश मिश्रा


हम खुशनसीब हैं कि हम अपनी विरासत को संजोने की पहल कर रहे हैं। इस बार लोकतंत्र के मंदिर, यानी संसद ने सरस्वती के प्राचीन मंदिर नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया है। इतिहास गवाह है कि सदियों बाद वह खुद को दोहराता है। इतिहास का एक ऐसा ही वरक हम आपके सामने पलट रहे हैं, जिस पर वर्तमान अपने अतीत को तलाशता हुआ भविष्य के लिए नई इबारतें लिख रहा है। यह सच्ची कहानी है उस नालंदा की जो 800 साल पहले कहीं अंधेरों में खो गया था।
नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण पांचवीं और छठी शताब्दी में गुप्त वंश के समय किया गया था। तब यह विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म की शिक्षा का केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म और हीनयान बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण कर छात्र पूरे विश्व को ‘बुद्धं शरणम् गच्छामि, धम्मम् शरणं गच्छामि, संघ शरणम् गच्छामिज् का संदेश देकर दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाते थे। पंद्रह सौ वर्ष पहले के इतिहास को खंगालने पर पता चलता है कि नालंदा में अन्य धर्मो के साथ-साथ विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, ज्योतिष विज्ञान और संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी। तब दुनिया में कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, हार्वर्ड जसे नामों का कहीं नामो-निशां न था। तब नालंदा में चीन, बर्मा, थाइलैंड, श्रीलंका, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया, इरान, तुर्की जसे कितने ही देशों के छात्रों को आचार्य, वैज्ञानिक और ज्ञानी बनाया जाता था।

नालंदा में दस हजार छात्र पढ़ते थे और दो हजार अध्यापक उन्हें पढ़ाते थे। वहां छात्रावास की परंपरा तभी से थी और जानकर आपको आश्चर्य होगा कि नालंदा में छात्रसंघ भी होता था। नालंदा के इतिहास को चंद लब्जों में समेटा नहीं जा सकता। अगर इसे समेटना है तो नालंदा तक चलकर जाना होगा, गर ये न हो सके तो नालंदा को पढ़ना होगा। नालंदा को ह्वेनसांग और इत्सिंग ने याद रखा था, फिर इसे एलेक्जेंडर कर्निघम ने खोज निकाला था। सदियों पहले नालंदा में ज्ञान की गंगा बहा करती थी और इस शहर में गूंजा करती थी छात्रों की और गुरुजनों की वाणियां।
मानसून सत्र में नालंदा का विधेयक पारित करनेवाले सांसद और यूपीए सरकार भी नालंदा को पुनर्जीवित करते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही थी। संसद में नालंदा विधेयक पास कर इसे एक हजार पांच करोड़ रुपए दिए हैं। केन्द्र सरकार यूनिवर्सिटी के लिए संसाधन मुहैया करा रही है। इसके नए रंग-रूप के लिए पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के पंद्रह सदस्य देश पैसा दे रहे हैं। बिहार सरकार ने इसके पुनर्निर्माण के लिए पांच सौ एकड़ जमीन दी है। नालंदा में अलग-अलग छह संकायों में इतिहास, भूगोल, दर्शन, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, साहित्य, व्यापार समेत करीब-करीब हर विषय की पढ़ाई होगी।
प्रो. अमर्त्य सेन की अध्यक्षता में एक मेंटर ग्रुप बनाया गया है जो अंतरिम गवर्निग बोर्ड के तौर पर नालंदा में काम करेगा। इस विधेयक का मकसद नालंदा को जीवित कर दुनिया को अमन चैन का पाठ पढ़ाना है। बहाना तो विश्वविद्यालय का है, लेकिन इसी के जरिए पूर्वी एशिया को एक मंच पर लाया जाएगा, ताकि बेहतर तालमेल बन सके। प्राचीन नालंदा दक्षिण और पूर्व एशिया की संस्कृतियों का संगम था, तब इसने अलग-अलग सभ्यताओं के बीच पुल का काम किया था। इतिहास से सबक लेते हुए नालंदा विश्वविद्यालय के जरिए एशिया प्रशांत क्षेत्र में देशों के हितों को जोड़कर सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी बनाई जा सकती है। यह पहल एशियाई नवचेतना में मील के पत्थर की तरह साबित हो सकती है, अगर अपनी आर्थिक हैसियत के बूते दक्षिण और पूर्वी एशिया के देश भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक मंच पर आकर सभ्यताओं के संगम को नालंदा का कुंभ बना दें और यह तब संभव है जब दुनिया शांति के पथ पर चलती हुई उस भूख की आग को बुझा सके। नालंदा आज भी हम से वादा करते हुए यह अपील कर रहा है कि अगर तुम विरासत को संभाल लोगे तो मैं तुम्हें आर्यभट्ट, शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल जसे ज्ञानी दूंगा।

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