Sunday, August 14, 2011

अपनी पुरानी शान में दिखेगा राय पिथोरा

भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा एक बार फिर दिल्ली को उसकी पुराने रौनक में लाने के लिए वह विभिन्न ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण कर रहा है। पुरातत्व विभाग राय पिथौरा के किले संरक्षित करके पुन: उसकी शान वापस दिलाने की कोशिश कर रहा है। 1150 में इस किले को चौहानों ने तोमरों को हराकर इस पर कब्जा कर लिया था लेकिन ऐसा कहा जाता है कि कुतुबु्ीन ऐबक चौहानों को हराकर 1192 में ‘किला राय पिथौरा पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बनाया। कभी इसा किले के 13 द्वार थे, जिसमें बरका,हौजरानी,और बायूं द्वार अब भी मौजू हैं। पुरातत्व विभाग इसकी साफ सफाई और खुदाई कर इसकी रौनक वापस लाने का भरपूर प्रयास कर रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के दिल्ली सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद मोहम्मद केके ने बताया कि इस किले का अपना ऐतिहासिक महत्व है। हालांकि दीवारों के अलावा इसका अन्य अवशेष दिखाई नहीं दे रहा है। यह दीवार लगभग 2 किमी लम्बी है। इसके संरक्षण का काम 2008 से चल रहा था हालांकि अब भी इसमें काफी काम करना बाकी है। इसके संरक्षण में लगभग एक करोड़ की लागत आई है।
इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में भारतीय पुरात् र्सेक्षण के शेिषज्ञोई डी शर्मा के अनुसार, बारहीं सी में शाकंभरी के चौहान शासक ग्रिहराज चतुर्थ ने तोमरों से ल्लिी छीन ली और उसके पौत्र पृथ्ीराज तृतीय ने लालकोट का स्तिार किया। यह स्तिारित नगर ही ‘किला राय पिथौराज् के रूप में लोकप्रिय हुआ, जो ल्लिी के सात नगरों में से एक है। इसे पृथ्ीराज राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था। भारतीय पुरातत्व विभाग के एक अधिकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्खनन में पता चलता है कि प्रारंभिक किला योजनानुसार आयताकार था और पश्चिम की तरफ पत्थर से बनी इसकी ऊंचीीारें थी। प्राचीरों के बाहर खाई थी, जो अब कुछ ही जगह शेष है। पत्थरों से बनीीारें ढाई से तीन मीटर तक मोटी है।



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