Thursday, December 4, 2008

विनाश काले विपरीत बुद्धि


विनाश काले विपरीत बुद्धि
हे लक्ष्मी मइया पधारो मेरे धाम, स्वागत है। हम आपका अपमान कतई नहीं करेंगे। बुरा हो सांसदों का आपको सबके सामने उछालते हैं और कहते हैं कि आपसे उनका कोई वास्ता नहीं है। जसे जीते लकड़ी मरते लकड़ी जरूरी है उसी तरह बिन लक्ष्मी सब सून। सुन ले माई सुन ले चवन्नी की अरज सुन ले। सहीराम गुजर रहे थे कि देखा चौधरी चवन्नी अगरबत्ती जलाकर लक्ष्मी जी की पूजा कर रहे थे। गौरतलब है कि चौधरी चवन्नी यूं तो बेइमान पार्टी के नेता हैं लेकिन राजनीति की आर्थिक दृष्टि से समीक्षा करने के लिए जाने जाते हैं।
सहीराम पूछ बैठे, चवन्नी जी सुना है सांसदों ने सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए पैसा लिया था? चवन्नी जी मंद मुस्कान और तिरछी तकान से बोले- सहीराम जी, रह गए ना सीधे के सीधे। अरे संसद तक पहुंचने के लिए कम पापड़ बेलने पड़ते हैं और रोज-रोज थोड़े ही बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है। बहती गंगा में हाथ धो लेा भाई फिर ना जाने कब मौका मिलेगा।
हमें तो तरस आता है उन सांसदों पर जिन्होंने माता लक्ष्मी का अपमान किया। वो भी सनसनी फैलाने वाले चैनलों के सामने। मुंह लजाकर रह जाता है और सोचकर बुद्धि भी चकरिया जाती है कि कैसे हैं अपने भाई-बंधु। अब आप ही बताइए नेता की कोई जाति होती है अगर ऐसे होगी बिना मुद्रा के पालिटिक्स तो राजनीति का भाग्य तो रसातल में जाएगा ही। जाने कैसे टिकट पा गए मूरख जपाट। अरे, जब लक्ष्मी मेहरबान थी तो सबके सामने छाती पीटकर बताने की क्या जरूरत थी, चले थे बड़के राजा हश्चिन्द्र बनने। दबा लेते अगल-बगल कौन देख रहा है। और यह संसद है, कोई देख भी लेता तो क्या। संसद ने सबकुछ देखा, ये भी देख लेती। लेकिन नहीं, पार्टी भक्ति चरचराई थी। सरकार रोज-रोज थोड़े ही अल्पमत में आती है लेकिन क्या करें सहीराम जी विनाश काले विपरीत बुद्धि। मैंने तो बड़ी कोशिश की थी कि चुनाव जीत जाऊं लेकिन लटक गया। बस जान जाइए कलेजा कचोट कर रह जाता है ऐसे अवसर देखकर।
इस लम्बे उत्तर के बाद सहीराम ने पूछ लिया, वामपंथियों के बारे में क्या खयाल है? मैं तो उन्हे पूरे सावन भर रात्रिभोज कराऊं। इस अल्पमत वाले ड्रामे के सूत्रधार अपने करात भाई तो थे ईश्वर उनकी सत्ता पक्ष से भी दुश्मनी बरकरार रखें। काश मेरे समय तक भी सरकार एकाध बार अल्पमत में आ जाती तो खुदा कसम जितना पैसा वोट पाने में लगाता उससे कई गुना एक वोट देने में वसूल कर लेता, काश..., कहकर चौधरी चवन्नी रुक गए उनके चेहरे पर संसद तक न पहुंच पाने की निराशा थी। सहीराम अभी कुछ पूछना चाहते कि उन्होंने कहा कि उन्हे अगले चुनाव की तैयारी करनी है और उनके पास जरा भी समय नहीं है।
अभिनव उपाध्याय

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