Saturday, November 29, 2008

4-पाड़े कौन कुमति तोहे लागी

4-पाड़े कौन कुमति तोहे लागी
स्वामी दयानंद पांडे उर्फ अमृतानंद उर्फ सुधाक र द्विवेदी इतने नाम मीडिया वालों के लिए हैं। चेला चुरकुन के लिए तो वह केवल पाड़े बाबा हैं। चेला बाबा की हरकत से अचंभित है। वह बाबा से कहता है कि बाबा पैंसठ किलो का गठीला बदन, भभूत, रुद्राक्ष, गटरमाला एकदम चकाचक। सुबह शाम रबड़ी-मलाई, नेता, मंत्री, व्यापारी द्वारा चरणवंदना, तारिकाओं, युवा दासियों और चंद्रमुखियों द्वारा अनवरत सेवा। बैंक एकाउंट मालामाल,सुबह शाम लक्ष्मी जी का साक्षात दर्शन, सैकड़ों एकड़ में फार्म हाउस, लक्जरी गाड़ियां लेकिन पांडे कौन कुमति तोहे लागी कि कट्टा, बम, बंदूक के चक्कर में पड़ गए।
बाबा साधू-संन्यासी तो धुनी रमाते हैं, चिलम चढ़ाकर बम भोले का दर्शन करते हैं। लोगों को ज्ञान का उपदेश देते हैं। भविष्यवाणी करते हैं। बाबा घोंघानंद बताते थे साधू-संन्यासियों को बारूद सूंघने से मूक्र्षा आती है। वह तो कमंडल से प्रसाद बांटते हैं। बाबाओं कि कृपा से न जाने कितनी भक्तिनें साध्वी बन गई। फिर बाबा आपको क्या सूझी कि साध्वी को बम फोड़ने की दीक्षा दे दी। अच्छी भली नारी थी, गाड़ी वाड़ी चला लेती थी कि उसकी भी मति मार दी। अब लोग पुजारिन लड़कियों से भी कतराने लगेंगे।
बाबा किस दुश्मन ने आपको यह सलाह दे दी कि बम फोड़ने का प्रशिक्षण दो। अरे, पहले ऐसे संगठन क्या कम थे जो एक नया स्कूल खोल दिया। अब तो कहीं दूसरे लोग भी बम फोड़ेगें तो तुम भी अंगुलियां उठेगीं।

बाबा धंधा बंद करने का विचार है क्या कि फौजी जसा काम कर रहे हो। मीडिया चिल्ला रही है आठ सौ लोगों को प्रशिक्षण दिया है। सब मार-काट मचाएंगे तो प्रवचन कौन सुनेगा।
पाड़े बाबा अब तो पूरा यकीन हो गया कि तुम्हारी नीयत बदल गई है।
चेला चुरकुन परेशान है वह बाबा की करतूतों पर चौंधिया रहा है उसे समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर क्या हो रहा है। बाबा के जेल में बंद होने से धंधे पर भी असर पड़ रहा है। लोगों को सफाई देते-देते उसका गला सूख रहा है। उसके बाबा की करतूत भी एक चाल नजर आ रही है लेकिन वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए वह परेशान है।
वह अपनी व्यथा सहीराम को भी सुना रहा है कि आजकल चुनाव का टाइम है भूले-भटके कितने नेता दर्शन को आते थे, अपनी व्यथा-कथा सुनाते थे। चढ़ावे में मुद्रा चढ़ाते थे। हम लोग भी जश्न में बुलाए जाते थे लेकिन बाबा की करतूत ने हमारी मिट्टी पलीत कर दी। कहीं ऐसा न हो कि हमारी रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएं। अब तो ये डर है कि बाबा के चक्कर में हमारी घनचक्कर न हो जाए।
अभिनव उपाध्याय

0 comments:

Post a Comment

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...