Saturday, November 29, 2008

हमें अपने हाथों पर भरोसा है

4-हमें अपने हाथों पर भरोसा है
बस रोजी रोटी किसी तरह चल रही है। सरकार ने अपना काम किया और हम अपना काम कर रहे हैं। यह कहना है धर्मपुरी ख्याला निवासी बलबीर सिंह का। चौरासी के दंगे की घटना को याद करके मानो उनकी रूह ही कांप जाती है। अब उनका काम कै से चल रहा है? यह पूछे जाने पर कहते हैं बस चल ही रहा है न सरकार को जो करना था वह कर गई। हमारा सब कुछ लुट गया। हमें अपनी मेहनत पर भरोसा है और इसी के सहारे हम अपना काम चला रहे हैं। अब दो वक्त की रोटी और पानी का जुगाड़ हो जाता है। कभी आटो चला लिया कभी मजदूरी कर ली हार कर कभी नहीं बैठे। मेरा मानना है जो हार गया वो मर गया।
दंगाइयों ने मुङो मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यह कहते-कहते उनकी आंखें भर आती है। फिर कु़छ देर चुप होने के बाद वह उस हादसे के बारे में बताने लगते हैं कि ‘हम राजस्थान से कमाने के लिए दिल्ली आए हुए थे। हम भाई के साथ सुल्तानपुरी पी 1 में रहते थे। 1 नवम्बर की शाम चारो तरफ धुंआ दिखाई दिया हमारे मुहल्ले के लोग घरों में घुस गए लोगों को यह डर सताने लगा कि हमारे साथ कुछ भी हो सकता है। कुछ लोग जो बाहर फंस गए थे उनके बारे में एक काफी भयानक समाचार सुनने क ो मिलते थे। हमें अपनों का भी साथ नहीं मिला हमने डर के मारे अपने हाथों से ही अपने बाल काट लिये। दंगाइयों ने हमारी बस्तियों को लोगों ने आग लगा दिया। हम डर के रिश्तेदारों के पास गए लेकिन हमारे रिश्तेदारों ने भी हमारा साथ नहीं दिया। उनको भी यह डर था कि कहीं दंगाई हमारी वजह से उनको न नुकसान पहुंचा दें। उस समय काफी ठंड पड़ रही थी दंगाइयों ने हमारा घर जला दिया था हमारे पास बिस्तर भी नहीं था।ज् यह कहते हुए उनका गला रुंध गया। उनको अपना परिवार खोने का गम है।
सरकार पर बिफरते हुए बलबीर सिंह ने कहा कि हमारे सारे कागजात जल गए थे सरकार बार-बार हमसे सबूत मांगती है हम सबूत कहां से दें। आज तक हमें एक पैसा मुआवजा भी नहीं मिला। हमें अफसोस इस बात का है कि जिस कांग्रेसी नेताओं को हमने वोट दिया था उसी ने हमारे साथ दगा किया। हमें आज तक अपना कसूर पता नहीं है। गलती किसी और ने की और सजा हम जसे बेगुनाहों को मिली। उस पर से सरकार की हर साल नौकरी देने की घोषणा लेकिन बस ख्याली पुलाव। अगर सरकार हमें नौकरी दे देती तो आज हम भी अपने बच्चों का पालन पोषण ठीक ढंग से करते हमारे बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढ़ते। अब हम अपनी मेहनत के बल पर जो कमाते उसी से गुजारा चलता है। हम मेहनती कौम के लोग हैं और मेहनत पर यकीन रखते हैं। लेकिन सरकारी सहायता अगर मिल जाती तो बुढ़ापे में थोड़ा आराम हो जाता।

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