Saturday, November 29, 2008

हमें बेगुनाही की सजा मिली

2-साजन सिंह
32/86-87 त्रिलोकपुरी यह पता है साजन सिंह के उस पुराने मकान का जहां वह बड़ी हंसी-खुशी अपने परिवार के साथ रहते थे लेकिन उनको क्या पता था कि 1 नवम्बर 1984 की रात उनके परिवार के लिए कयामत की रात बन कर आएगी।
57 वर्षीय साजन सिंह उस वक्त को याद करते हुए अब भी कांप जाते हैं। उनका कहना है कि हमें बेगुनाही की सजा मिली। इस हादसे के बारे में बताते हैं कि ‘उस समय मैं निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करता था जब पता चला कि दो सिक्खों ने प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को गोली मार दी है और वह एम्स में भर्ती हैं।
दंगाइयों से बचने के लिए मैंने अपने हाथों से ही अपना बाल काट लिय। दंगाई मुङो भी ढूंढते हुए आए लेकिन सीढ़ियों के नीचे मेरी पत्नी ने मुङो छुपा दिया और उसके ऊपर चारपाई डाल दी। तब जाकर मेरी जान बची।ज्
उन्होंने आगे बताया कि दंगाइयों ने मेरे बारे में मेरी पत्नी ठाकरी से भी पूछा, उसके नहीं बताने पर उसे डंडे मारा। आज भी उसे घाव दर्द देते हैं।
उनका कहना है कि काफी मुसीबत के बाद उनको तिलक नगर में मकान मिला जिसमें वह अपने परिवार के साथ रहने आए लेकिन खाने को कुछ भी नहीं था और हमारे सारे सामान लूट लिए गए थे। अब फिर से एक नई शुरुआत करना कठिन काम था। काफी दिनों के बाद हमने आटो चलाना फिर शुरू कर दिया। जिससे कुछ आमदनी हुई। लेकिन रोज की कमाई भी इतने परिवार के लिए कम पड़ जाती थी। इस बीच सरकार ने हमको जो मुआवजा दिया वह आगे के लिए सहारा बना।
उनका कहना है कि ‘उस समय उनको 10 हजार रुपए की दो किस्तें मिलीं। जिससे काफी मदद मिली क्योंकि सब कु़छ लुट जाने के बाद कुछ पैसा मिल जाने से हमें थोड़ा साहस मिला। इसके बाद सरकार ने हमें सात लाख रुपए दिए जिससे हमनें अपनी बेटियों की शादी की। तीन बेटियों की शादी हमने मुआवजे के पैसों से की। लेकिन घर का खर्च चलाने के लिए मुङो फिर से मेहनत करनी पड़ी।ज्
अपनी वर्तमान स्थिति के बारे साजन सिंह बताते हैं कि ‘अब भी तीन लड़कियों की शादी करनी है और दो लड़के हैं जो पढ़ाई पूरी करके काम की तलाश में हैं। एक बेटा आटो चलाता है जिससे कु़छ आमदनी हो जाती है।ज्
साजन सिंह का कहना है कि उनकी गुरुनानक में बड़ी आस्था है इसलिए वह वक्त निकालकर गुरुद्वारे की सेवा करने जरूर जाते हैं। अपनी इस नई शुरुआत से वह खुश हैं लेकिन अपने परिजनों के खोने का दुख उन्हे अब भी है। उनको सरकार से भी शिकायत है कि 84 के पीड़ितों के लिए जो मुआवजा निर्धारित किया गया था वह उन्हें नहीं मिला। सरकार भी उनके साथ छलावा करती है। आज तक मेडिकल क्लेम भी उनके परिवार को नहीं मिला। यही नहीं उनका कहना है कि उनके पिता की मृत्यु का मुआवजा उन्हे 2006 में मिला।
इसके बाद भी वह कहते हैं कि अब सब कुछ ठीक है लेकिन बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। सरकार अगर उन्हे रोजगार दे देती तो उनकी जिंदगी भी संवर जाती।

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