Saturday, November 29, 2008

हमें अपनी मेहनत पर नाज है

1-महेंद्र सिंह
वीरेन्द्र नगर निवासी महेन्द्र सिंह उर्फ गोल्डी जब भी 84 के दंगे को याद करते हैं यही कहते हैं कि हम उसे एक बुरा सपना समझकर भूल जाना चाहते हैं। वह बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि ‘इस दंगे को कांग्रेस ने भड़ाकाया लेकिन और दलों की भूमिका भी बुहुत अच्छी नहीं थी। बहरहाल वह दिन बीत गया। उसे हम फिर याद भी नहीं करना चाहते क्योंकि ऐसा लगता है कि नियति में यही लिखा था।ज्


यह पूछे जाने पर कि हादसे के बाद किस तरह संभले महेन्द्र सिंह का कहना है कि हम चार भाई थे पिता जी सेना में काम करते थे तब तनख्वाह बहुत अधिक नहीं हुआ करती थी। बस किसी तरह खर्च चल जाया करता था। तंगी की हालत में पिता जी जो पैसा भेजते थे उसी से घर का खर्च चलता था लेकिन वह पैसा पर्याप्त नहीं हो पाता था। हमारे बुजुर्गों ने इस हालात के बाद फुटपाथ पर ब्रेड तक बेंचा है।

अब हम भाइयों ने भी उस हालत में अखबार बेंचना शुरू कर दिया था। फिर भी पैसे इतने नहीं मिलते थे कि एक अच्छा जीवन बसर कर लिया जाए। कभी ब्रेड चाय के साथ खा लिया तो कभी नमक रोटी के साथ। इसी तरह आधे पेट खाकर गुजारा होता था। इसके बाद भाई ने कूलर बनाने का काम शुरू कर दिया। इससे कुछ पैसे अधिक मिल जाते थे।


हमने फिर रहने के लिए एक मकान लिया। अब धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आने लगी थी। लेकिन हमारे आमदनी का जरिया अब भी बहुत अधिक नहीं था। फिर हमने गाड़ी बेचने और खरीदने का काम शुरू कर दिया। इसके अलावा लोगों को मकान किराए पर दिलवाना, अखबार के डीलर को एक नया ग्राहक देना जसे काम भी किए।


वह मुस्कुराते हुए बताते हैं कि एक हिन्दी अखबार का ग्राहक दिलाने पर 15 रुपए और एक अंग्रेजी अखबार का ग्राहक दिलाने पर 20 रुपए मिलते थे। इससे धीरे-धीरे हमारे पास कुछ पैसे इकट्ठे हो गए। अब हमने अपना खुद का कारोबार करने का सोचा। वाहे गुरू की कृपा से हमारी मेहनत रंग लाने लगी। हमें जसे-जसे फायदा होता था हम दुगनी मेहनत से काम करते थे।


धीरे-धीरे भाइयों की भी अब शादी हो गई और सबने अपना-अपना घर बसा लिया। हमारी भी शादी हो गई। हमने अपना एक छोटा सा अखबार खोल लिया। जिसमें लोगों की समस्यायों को हम प्रमुखता से उठाते हैं। हमारे अखबार का सर्कुलेशन बहुत अधिक नहीं है फिर भी आजीविका चल जाती है।


इस दंगे में हमें हिला कर रख दिया लेकिन फिर हम अपनी मेहनत के साथ आज जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। हर एक मुश्किल हमें नई सीख देती है और मुश्किलें हमें काम करने की प्रेरणा देती है। हम अपने परिवार के शुक्रगुजार हैं कि इस मुश्किल भरे दिन में हमारे परिवार ने हमारा भरपूर साथ दिया।

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