6-मनिंदर सिंह
नए हौसले से की शुरुआत
मनिन्दर सिंह एक ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाते हैं। इस समय वह अपनी मेहनत से ट्रकों की संख्या में इजाफा कर रहे हैं। ये हिम्मत, ये जज्बा, ये तरक्की उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का परिणाम है। 1984 में हुए सिख दंगों में मानो इनका पूरा व्यापार ही बिखर गया था। दंगाइयों ने इनके ट्रकों को आग लगा दी घर छोड़कर इनके परिवार को लंगर में दिन बिताना पड़ा। फिर भी एक नए हौसले के साथ इन्होंने शुरूआत की।
अपने बुरे वक्त को याद करते हुए मनिंदर कहते हैं कि वह समय हमारा सब कुछ लुटा देने वाला था। हमें यह भी पता नहीं था कब हमारे साथ क्या हो जाएगा। क्योंकि चारो ओर हाहाकार था हम तो पहले कुछ समझ नहीं पाए कि आखिर क्या हो रहा है। हमारे ढेर सारे साथी घरों में छुप गए। हम सब अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे थे।
मनिन्दर सिंह तब भी आश्रम में ही रहते थे उस वक्त भी उनका ट्रांसपोर्ट का ही काम था। 31 अक्टूबर की घटना को याद करते हुए वह बताते हैं कि उन्हे कहीं बाहर जाना था लेकिन हालात ठीक न होने की वजह से वह नहीं जा सके। आश्रम पुल के पास ही हमारा घर था। हमने घर के बाहर अपनी सारी ट्रकें लगा दी जिससे की दंगाई इधर न आ सकें। 1 नवम्बर को दंगाइयों बड़ा हुजूूम हमारे घरों की तरफ आ रहा था। उस समय पुलिस ने भी उन्हे नहीं रोका। वह बस हमें भरोसा दिला रहे थे कि हम सुरक्षित हैं लेकिन वास्तविकता यह नहीं थी। हमने भी अपने बचाव के सारे उपाय कर लिए थे। उनका कहना है कि ‘हमारे घरों की औरतों की भी बुरी स्थिति थी। इनको लेकर हम भी चिंचित थे। पुल के ऊपर पीएससी लगी थी वो हमारे घरों की तरफ कुछ ऐसा फेंकते थे जिसके आग लग जाती थी। उसी समय हमारा सारा ट्रक जल गया। हम डर के मारे बाला साहब ग़ुरुद्वारे में चले गए। जब यहां पर आर्मी आई तब जाकर हालात कुछ सुधरे। हम लोग शालीमार के मार एक कैंप में रहे क्योंकि हम पूरी तरह असुरक्षित थे। लगभग हमारा सब कुछ लुट गया था। ड़ेढ महीने तक यहां आर्मी ने फ्लैग मार्च किया। हमने डेढ़ महीने तक गुरुद्वारे का लंगर खाया। उस समय की कांग्रेस सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी। उस वक्त हमारे देश का राष्ट्रपति और गृहमंत्री दोनों सिख थे हमें ऐसे हादसे की उम्मीद नहीं थी। हमारे गुरुओं ने इस देश के लिए शहादत दी है। सरकार ने हमें पूरी तरह से अपाहिज बना दिया।ज्
हम तो बिल्कुल बरबाद हो गए थे, हमारे धार्मिक नेताओं ने हमें बैंक से कर्जे दिलाए जिससे हमारी गाड़ी फिर पटरी पर आ गई। आज हम पहले से अच्छी स्थिति में हैं। अब व्यापार भी ठीक से चल रहा है। लेकिन राजनीति का कोई धर्म नहीं है। हमें सरकारों ने केवल इस्तेमाल किया है। हमे अब भी ये डर रहता है कि कहीं ऐसे हादसे फिर न हो जाएं।
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