3-आत्मा सिंह लुबाना
नाम आत्मा सिंह लुबाना पिता का नाम मिरचू सिंह पुराना पता मंगोलपुरी एफ ब्लाक 825। अब तिलक विहार में रहते हैं। एक प्रश्न का इतनी बेबाकी से उत्तर देने के बाद उन्होंने पूछ लिया, लेकिन आप क्या पूछना चाहते हैं। और क्यों पूछना चाहते हैं? इसके अतिरिक्त ढेर सारे सवाल आत्मा सिंह लुबाना ने गुरुद्वारा तिलक विहार में हमसे पूछ लिया। हमने अपना परिचय देने के साथ 1984 के सिख दंगा पीड़ितों की वर्तमान स्थिति के बारे में जानने की जिज्ञासा बताई। और फिर बात शुरू हो गई।
उन्होंने बताया कि ‘इस दंगे में हमने अपने बहुत सारे रिश्तेदार और भाई चंदन सिंह को खो दिया। मां, पिता जी, भाभी ये लोग राजस्थान शादी में गए थे इसलिए बच गए। बस किसी तरह मेरी भी जान बच गईज्।
अपनी आप बीती बताते हुए आत्मा सिंह ने कहा ‘ मैं 1 नवम्बर को विष्णु गार्डेन से पहाड़गंज जाने के लिए सुबह 6 बजे निकला कि दंगाइयों ने मेरे ऊपर पथराव शुरू कर दिए। मैं भागते और छुपते हुए अपने भाई के ससुराल आ गया। और 11 बजे के बाद दंगे ने तेजी पकड़ ली। हमें बाद में पता चला कि दंगाइयों ने हमारी दुकान भी लूट ली। एक से दस तारीख तक मैं भाई की ससुराल ही रहा। इसके बाद में डर के मारे मैंने अपनी दुकान मात्र 18 हजार में बेच दी। अब हमारे तंगहाली की शुरुआत हो चुकी थी। माहौल चारो तरफ खराब हो चुका था मैं इस स्थिति को देखकर परेशान था। खाने-कमाने को कुछ नहीं बचा था अब लौटकर अपने गृह राज्य राजस्थान ही जाना उचित समझा, इसलिए 30 महीनों तक राजस्थान रहा। इसके बाद फिर दिल्ली आया और इस बार मैंने 84 के दंगों में पीड़ित हुए लोगों के साथ खड़ा हो गया। और उनके हक के लिए लड़ाई छेड़ दी। मुङो नवम्बर 1984 दंगा पीड़ित कैंप का अध्यक्ष चुना गया इसके अलावा मैं दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंध कमेटी का मेंबर भी रह चुका हूं। फिर मैंने पीड़ितों के पुनर्वास के लिए भी कोशिशें की। हम लोगो के संयुक्त प्रयास से उस समय के गृहमंत्री बूटा सिंह के ऊपर दबाव बनाया जिससे उन्होने पीड़ितो से शपथ पत्र मांगे हमने अपने हाथों से 493 लोगों के शपथपत्र लिखे लेकिन मात्र 203 लोगों के शपथ पत्र को अनदेखा कर दिया गया। लेकिन जो शपथ पत्र हमनें लिखे उस पर ही जगदीश टाइटलर और अन्य आरोपियों पर कार्रवाई हुई। इस मामले में कइयों गवाहों को अनदेखा कर दिया गया।
हमारे कई साथियों की जिंदगी इस हादसे के बाद धीरे-धीरे सुधर रही है कुछ तो अब भी न्याय की आस में भटक रहे हैं। हम भी धीरे-धीरे अपने काम को शुरू कर दिये जिससे रोजी-रोटी चल निकली बस किसी तरह अब पटरी पर आ गई है जिंदगी। अब हमारे पास एक किरोसीन ऑयल की दुकान है भाई किसी तरह अमेरिका चले गए इससे हमारी आर्थिक हालत में काफी सुधार आया। अब तो अधिकतर समय गुरुद्वारे में ही बीतता है। इसी का निर्माण कराने में लगे हैं। अगर कोई अपनी समस्या ले के आ जाता है तो जनप्रतिनिधि होने के नाते उसकी मदद भी कर देता हूं। लेकिन हम सरकार से यह मांग करते हैं कि पीड़ितो को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए जिससे उनकी हालत में सुधार आ सके।
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