Saturday, November 29, 2008

हिम्मत हो तो आसान है जिंदगी

5-शमनी बाई
हिम्मत हो तो आसान है जिंदगी
देवर की आटे की चक्की है उसी के परिवार के साथ रहती हूं बेटे की तरह पाला है उसको और आज भी उसी फूर्ती के साथ कभी-कभी रोटी पका कर खिला देती हूं। ये कहना है 50 साल की शमनी बाई का जो 84 के दंगे के समय त्रिलोकपुरी में रहती थी और अब तिलक विहार में अपने पूरे परिवार के साथ रहती हैं। दंगे का दर्द इन्हे अब भी टीसता है। इसके बारे में कुछ पूछने पर वह अपने परिवार के मारे गए परिजनों के बारे में बताने लगती हैं। इनका दुख कम नहीं है। 84 का दंगा इनके परिवार पर पहाड़ बन कर टूटा। स्थिति तब कुछ बेहतर हुई जब सरकार ने इन्हे एक स्कूल में चपरासी की नौकरी दी जिससे रोटी के लाले नहीं पड़े। लेकिन उम्र गलत लिख जाने के कारण समय से पहले नौकरी भी चली गई। उनको यह अफसोस है कि उनके पति दंगे की चपेट में आ गए लेकिन जिस हिम्मत से उन्होनें अपने घर को चलाया उस पर पड़ोस वालों को भी फक्र है। उनका कहना है कि यदि हिम्मत हो तो बड़ी से बड़ी मुश्किल का सामना किया जा सकता है।
दंगे की घटना याद करते ही हिल उठती हैं। उनका कहना है कि ‘दंगाइयों ने चुन चुन कर हमारे परिवार के लोगों को मारा पहले देवर को मारा सास बचाने गई तो सास को भी मार दिया। मेरे 15 साल के बेटे मनोहर को तो मेरी आंखों के सामने मारा। चिलागांव के पास पति को मारा, जेठ, जिठानी सबको मारा। पूरी तरह बिखर गया हमारा परिवार, अपनों का कोई सहारा नहीं बचा था जो हमें ढांढस बंधाता बस एक दूसरे का मुंह देखकर जीते थे। छोटे बेटे का हमने बाल काट दिया।ज्
यह पूछे जाने पर कि क्या घरों को लूटने वाले आपके पड़ोसी थे या बाहरी? उनका कहना था कि लूटने वाले हमारे पड़ोसी नहीं थे क्योंकि पूरे मुहल्ले में अपने लोग ही बसे थे। हमें बाहरी लोगों ने लूटा जो झुग्गियों में रहते थे। उन्होने हमारा सारा सामान उठा लिया और हमारे घर को आग लगा दी।
शमनी बाई को पुलिस से भी शिकायत है कि उसने उनका साथ न देकर दंगाइयों का साथ दिया नहीं तो आज उनको यह दिन नहीं देखने पड़ते। पारिवारिक समस्या से जूझते हुए उन्होने मुआवजे के पैसों से अपनी बेटियों की शादी की। लेकिन सरकार से वह अब भी नाराज हैं उनके पास सारे सबूत हैं लेकिन उस पर किसी तरह की सुनवाई नहीं होती है। सरकार से उनकी मांग है कि वह उनके बच्चों को नौकरी दे देती तो वे बेरोजगार होकर नहीं घूमते या कुछ पैसे दे देती जिससे वह अपना व्यापार चला लेते। जिससे उनका भविष्य सुधर जाता। उन्हे इस बात का अफसोस है कि वह अपने बच्चों को पढ़ा नहीं सकी। फिर भी बच्चों को अपनी मां के संघर्ष से सीख मिलती है और वह अपनी मां को देखकर आगे बढ़ने को प्रेरित होते हैं।

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