Saturday, November 29, 2008

मैं असुरक्षित नहीं हूं

9-वजीर सिंह
मैं असुरक्षित नहीं हूं
तिलक नगर में रहने वाले वजीर सिंह अब प्रापर्टी डीलिंग का काम करते हैं। 84 के दंगों को याद करते हुए वह कहते हैं कि वह एक भयानक हादसा था जिसने हम सबको हिला दिया, कुछ दिनों के लिए हम अर्श स्ेा फर्श पर आ गए थे। लेकिन अपनी मेहतन और लगन से आज हम अच्छी स्थिति में हैं।
उन दिनों को याद करते हुए 43 वर्षीय वजीर सिंह का कहना है ‘उस समय वह अपने परिवार के साथ त्रिलोक पुरी 32/15 में रहते थे। घर का खर्च चलाने के लिए बस कुछ भी कर लेते थे। अधिक शिक्षा न होने के कारण कोई बड़ी तनख्वाह का नहीं मिलती थी। 1 नवम्बर 1984 को जब दंगे की शुरुआत हुई उस समय मैं कैपको इंजीनियरिंग वर्क्‍स पटपड़गंज में इंजीनियरिंग का काम करता था। जब हम लोग ड्यूटी पर जा रहे थे उसी समय दंगाइयों ने रोका। उसके बाद दंगाइयों ने फैक्ट्रियों में आग लगाना शुरू कर दिया।
यह दौर वास्तव हमारे परिवार के काफी मुश्किल था क्योंकि डर के कारण हम सहमें हुए थे और काम पर भी नहीं जा रहे थे। लेकिन दो नवम्बर हमारे लिए तबाही लेकर आया इस दिन दंगाइयों ने हमारे परिवार को तबाह कर दिया इस दंगे में हमारे कुल 15 सगे संबंधी मारे गए। हमारे पड़ोसियों से हमें काफी सहायता मिली। उनका कहना है कि यह सच है कि दंगों में सबसे अधिक मार-काट निचली जातियों के लोगों ने किया। फिर भी वजीर सिंह का कहना है कि ‘मैं प्रकाश हरिजन का शुक्रगुजार हूं जिसने मेरी जान बचाई। जब लोगों को इसके बारे में पता चला तो लोगों ने उसे भी धमकाया। फिर हमें दूसरी जगह शरण लेनी पड़ी। मेरी बुआ ने मेरा बाल काट दिया।ज्
पहली बार दंगे में सेना के साथ तोप सड़कों पर चली। सेना के आ जाने से हमें काफी राहत हुई। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘उस समय उनके इलाके के एमपी एचकेएल भगत थे लेकिन उन्होंने हमारी तनिक भी सहायता नहीं की। हमें मिलिट्री फर्श बाजार कैंप ले गई। जहां पर हमें खाना-पानी और सुरक्षा मुहैय्या कराई गई।ज् उन्होने उस समय के काउंसलर के ऊपर भी आरोप लगाते हुए कहा कि ‘उसने कल्याणपुरी में खड़ा होकर दंगा करवाया।ज्
यह पूछे जाने पर कि कैसे बीता यह मुश्किल भरा दौर, उनका कहना है कि ‘सब वाहे गुरू की कृ पा की है उन्होने ही हमें शक्ति दी। हमारा लगभग सब कुछ लुट गया था अब हमें फिर से एक नई शुरूआत करनी थी और हमने इस चुनौती को स्वीकार किया। सबसे पहले हमने किराए का आटो चलाया यह काम हमने सात साल किया। लेकिन इससे मिलने वाले पैसों से घर की गाड़ी मुश्किल से चल पा रही थी। फिर स्पेयर पार्ट्स की दुकान खोली। लेकिन इसमें भी कोई खास मुनाफा नहीं हो पा रहा था। इसी बीच हमारी शादी हो गई इससे जिम्मेदारी और बढ़ गई। अब हमने राजस्थान जो हमारा पैतृक गांव था वहां की जमीन बेंच दी और प्रापर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया। इसमें हमें थोक मुनाफा होने लगा। तब से यही काम करता हूं।ज्
वह आगे कहते हैं कि आज मैं अपने को असुरक्षित महसूस नहीं करता हूं क्योंकि सबसे मेरे अच्छे संबंध हैं। और हमारी कोशिश भाईचारा बनाने की रहती है।

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