8-धनवंत बिंद्रा
हम अखंड भारत चाहते हैं
1984 के दंगों को याद करते हुए टी-26 मस्जिद लेन निवासी धनवंत सिंह बिंद्रा बताते हैं कि उस समय वह वेस्टन कंपनी में सर्विस मैनेजर थे। वह बताते हैं कि ‘हमें पता चल चुका था कि इंदिरा गांधी को गोली मारी जा चुकी है। उस दिन कंपनी में पहले ही छुट्टी हो गई थी। स्थिति के बारे में बस लोगों से ही सुन रहा था। घर के लोगों की चिंता सता रही थी। किसी तरह घर आया वहां पता चला कि पिता जी मेडिकल में एक रिश्तेदार को देखने गए हैं। मुङो उनकी फि क्र सताने लगी। मैं फौरन पिता जी को देखने मेडिकल की तरफ भागा। जब कोटला के पास के पास पहुंचा तो पता चला लोग सिखों को देखकर भगा दे रहे हैं। सफदर जंग चौराहे पर राष्ट्रपति ज्ञानी जल सिंह की गाड़ी पर पथराव हुआ इससे स्थिति और गंभीर हो गई पहली बार ऐसा लगा कि अब राष्ट्रपति भी असुरक्षित हैं। वहां जाने पर पता चला कि पिता जी सुरक्षित घर जा चुके हैं।ज्
31 अक्टूबर को ही स्थिति तनाव पूर्ण हो गई थी। टिंबर मार्के ट की दुकानों को लोग लूट रहे थे और जला रहे थे। बाकी दुकानों को रात में ही बंद कर दे रहे थे। हमारे जीजा जी का ट्रक दंगाइयों ने लूट लिया। यह पूछे जाने पर कि क्या दंगाइयों को वह जानते थे धनवंत सिंह ने बताया कि अधिकतर दंगाई बाहर के थे जो केवल सामान लूटते या आग लगा देते थे। हमें बस घटनाओं का पता चलता कि यहां गोली चली है।
उनको खुद जो परेशानी उठानी पड़ी उसके बारे में वह बताते हैं कि माहौल चारो तरफ अच्छा नहीं था दुकाने भी बंद थी हमरा बच्चा छोटा गोद में था उसे दूध चाहिए था और दूध की डेरी निजामुद्दीन में थी। मुङो याद है एक सज्जन ने वहां स्थिति की नजाकत देखते हुए हमें भीड़ से अलग बुलाते हुए जल्दी से दूध दिया। दंगाई वहां पास में स्थित एक टेलीविजन की पूरी फैक्ट्री लूट ले गए। अफसोस इस बात का है कि पुलिस इस सारे कारनामें को मूकदर्शक बनकर देखती रही। इसके बाद हम लोगों ने भी अपने घरों में तलवार रखना शुरू कर दिया।
हमारे यहां भी दंगाई कभी भी आ सकते थे इसलिए हमारे मुहल्ले के लोगों ने गलियों में ट्रक खड़ा कर दिया था। मुङो पिता जी की बात नहीं भूलती उन्होने कहा कि ऐसा लगता है कि 1947 का दौर फिर आ गया।
हमें राहत तब मिली जब तीसरे दिन मद्रास रेजिमेंट यहां आई। रेजिमेंट ने सबसे पहले यही कहा कि जिसके घरों से लूट का सामान बरामद होगा उन्हे सजा दी जाएगी। इसके बाद लूट की घटना लगभग बंद हो गई।
सबसे ज्यादा लूट झुग्गियों में रहने वालों ने की। और आर्मी के डर से इनमें से कुछ ने सामान बाहर भी फेंक दिया। इस पूरे प्रकरण में सरकार के सिपहसालारों की भूमिका संदिग्ध थी। अभी तक बहुत से ऐसे परिवार हैं जिनको सहायता राशि नहीं मिली है।
यह पूछे जाने पर कि अब कैसा महसूस करते हैं? उनका कहना है कि ऐसी घटनाएं देश को तोड़ती हैं इससे असुरक्षा पनपती है। हम तो हर हालत में अखंड भारत चाहते हैं।
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